
जमीन का नामांतरण होने का खुलासा तब हुआ जब पिछले साल 16 अक्टूबर को नीलम पत्नी टिम मेकडॉनल्ड निवासी हिमालय होटल, केलिम पोंग जिला दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल की ओर से आरआई अशोक सिंह सर्वे क्रमांक 1846, 1847 की नपाई के लिए पहुंचे। प्राचार्य ने जब इस इसका विरोध किया तो उन्हें नामांतरण होने का हवाला दिया गया। इस पर प्राचार्य ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी जमीन के दस्तावेजों के साथ तुरंत (21 अक्टूबर) कलेक्टर को भेज कर जमीन को बचाने की गुहार लगाई। जब तीन महीने तक कोई सुनवाई नहीं हुई तो कॉलेज प्रशासन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है और जमीन को बचाने की गुहार लगाई है। फरवरी के दूसरे हफ्ते में हाईकोर्ट में कॉलेज की याचिका पर सुनवाई है।
पुतली बाई की जमीन बताकर किया नामांतरण
पुणे निवासी कर्नल विजय सिंह, विक्रम जाधव व नीलम द्वारा एसडीएम के यहां दायर अपील में बताया गया कि राजस्व के अभिलेख में सर्वे क्रमांक 1846, 1847 की जमीन पुतली बाई के नाम दर्ज है। उनकी मृत्यु 24 नवंबर 1985 को हो गई। जयश्री उनकी पुत्री थी और उनकी भी मौत हो गई। पुतलीबाई का एक दत्तक पुत्र भी थे मानिकराव। तीनों अपीलकर्ताओं ने पुतली बाई से नानी का रिश्ता बताते हुए शिकायत की कि तहसीलदार ने जमीन पुणे निवासी मानिक राव भौंसले के नाम जमीन कर दी है जबकि जमीन जयश्री व मानिकराव के बीच बराबर-बराबर बंटनी थी है। अपील पर 5 मई 2015 को तत्कालीन एसडीएम अखिलेश जैन ने आदेश पारित कर सर्वे क्रमांक 1846 व 1847 का नामांतरण विजय सिंह, विक्रम सिंह व नीलम के पक्ष में कर दिया। इसके बाद एसडीएम ने पटवारी को निर्देश दिए कि मानिक राव भौंसले के साथ-साथ खसरे में इन तीनों के नाम दर्ज किए जाएं।
- नामांतरण से पहले इन बिंदुओं पर नहीं किया गया विचार
- पिछले 50 साल से जमीन कॉलेज के कब्जे में है। चारों ओर बाउंड्रीवॉल बनी हुई है। इस जमीन पर फैसला देने से पहले कॉलेज व शासन को पार्टी बनाना था। उनका पक्ष सुनना था कि जमीन किसके मालिकाना हक की है।
- जमीन के खसरे पर शासकीय लिखा हुआ था, फिर भी इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया और इसे निजी करने का फैसला ले लिया।
- पुतलीबाई कौन थीं और उनकी मृत्यु के तत्काल बाद जमीन पर कोई दावा करने क्यों नहीं आया। 31 साल बाद जमीन के मालिक सामने आ गए और तत्काल जमीन भी मिल गई।