
संकेत है कि आने वाले बजट में गांवों में मकान, रोजगार, स्वरोजगार, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ, भूमि सुधार कार्यक्रम, खेती और पशुपालन के लिए आधारभूत सुविधाओं संबंधी कुछ बदलाव घोषित किए जा सकते हैं। इन बदलावों के संकेत पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने दिए हैं। सरकार की मंशा ग्रामीण क्षेत्र में उद्योगों को बढ़ावा देने की भी दिख रही है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति को तेजी मिलेगी। एक बात साफ होने लगी है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बढ़ाना है तो खेती की और खास ध्यान देना होगा। पिछले दो सालों से जिस तरह से मानसून धोखा दे रहा है उससे खेती और किसान प्रभावित हो रहे है । जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार सरकारों ने कुछ कोशिशें कीं तो हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं।
ग्रामीण युवा शक्ति का उपयोग गांव में ही उत्पादक कार्यों में किया जा सकता है। गांवों को सड़क मार्गों से जोड़ने और यातायात सुविधाओं के विस्तार, बिजली की नियमित आपूर्ति, पीने को स्वच्छ पानी, प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा, प्राथमिक से उच्चतर शिक्षा की गांव और गांव से निकटतम स्थान में समुचित व्यवस्था, ग्रामीण उद्योगों के लिए प्रशिक्षण और विपणन सहयोग जैसी सुविधाएं उपलब्ध हों तो ग्रामीण युवा शक्ति का बेहतर उपयोग हो सकता है। सरकार को ग्रामीण विकास के लिए दो दिशाओं में ध्यान देना होगा। खेती को आसान बनाने और उससे संबंधित सुविधाओं-साधनों को विस्तारित करने की जरूरत है। गांवों से आसान पहुंच की दूरी में उद्योग, लघुउद्योग विकसित करने होंगे। ग्रामीण उत्पादों के विपणन के लिए बाजार उपलब्ध कराना होगा। इसके लिए सरकार का अपना तंत्र पहले से है। केवल इस तंत्र को सक्रिय और जवाबदेह बनाने की जरूरत है। इससे सरकार को आधारभूत सुविधाओं के अलावा अन्य राशि व्यय भी नहीं करनी पड़ेगी और उपलब्ध तंत्र की जवाबदेही तय होने से उन्हें परिणाम देना होगा। बैंकों की ऋण योजनाएं भी पहले ही से हैं। अनेक योजनाएं चल रही हैं । कृषि सहायक, पशुपालन सहायक, आंगनबाड़ी,पोषाहार, एएनएम, शिक्षा सहायक जैसी न जाने कितने तंत्र गांवों में हैं, केवल इसका समुचित उपयोग ही गांवों की तकदीर बदल सकता है।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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