
इसी तरह अरुण कुमार तिवारी की भी मूल नियुक्ति अवैध तरीके से हुई थी और उनको बर्खास्त करने की कार्रवाई एकदम उचित है।
जांच कराकर रिपोर्ट पेश करें
सरकार की ओर से दिए गए इस बयान पर चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की युगलपीठ ने सरकार को कहा है कि वह अपने बोर्डों, निगमों और मण्डलों में भी ऐसी नियुक्तियों की जांच कराकर रिपोर्ट पेश करे। मामले पर अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होगी।
उपकृत करने नोटशीट बनवाई
गौरतलब है कि दिग्गी ने जल संसाधन विभाग के एक दिहाड़ी कर्मचारी अरुण कुमार तिवारी की नियुक्ति उपयंत्री के पद पर करा दी थी। तिवारी की दिहाड़ी के रूप में नियुक्ति हाइकोर्ट ने अवैध ठहराकर 1997 को निरस्त कर दी थी। इसके बाद खुद दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में तिवारी को उपकृत करने नोटशीट बनवाई और नियमों को शिथिल करके 21 मई 1998 को उसे उपयंत्री बनवा दिया। इस नियुक्ति को चुनौती देकर मनसुख लाल सराफ ने वर्ष 1999 में एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी।
सरकार कार्रवाई करके रिपोर्ट पेश करे
इस जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने 6 अगस्त 2015 को दिग्विजय सिंह द्वारा कराई गई इस नियुक्ति को न सिर्फ खारिज कर दिया था, बल्कि मुख्य सचिव को सभी विभागों में हुईं ऐसी नियुक्तियों की जांच करके रिपोर्ट पेश करने के भी निर्देश दिए थे। इसके बाद अरुण तिवारी ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करके अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि उसके नियमितिकरण के बारे में सरकार कार्रवाई करके रिपोर्ट पेश करे।
अभी तक 350 मामले पकड़े
मामले पर आगे हुई सुनवाई के दौरान शासन की ओर से उपमहाधिवक्ता समदर्शी तिवारी ने युगलपीठ को बताया कि फर्जी नियुक्तियों को लेकर बनी छानबीन समिति ने अभी तक 350 मामले पकड़े हैं, जिनमें से 250 कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा चुका है, बाकी में जांच की प्रक्रिया जारी है। इस बयान को सुनकर युगलपीठ ने मामले की सुनवाई मुल्तवी करके सरकार को रिपोर्ट पेश करने कहा है।