
अफ्रीका में कुली बैरिस्टर गांधी: एक नजर
गांधीजी अब्दुल्ला सेठ के दीवानी के मुकदमे में पैरवी करने के लिये। मुंबई से डर्बन रवाना हो गए। जहाज में भीड होने के कारण उसके कप्तान ने उन्हें अपने केबिन में स्थान दे दिया। वह उनका मित्र बन गया और रोज उनके साथ शतरंज खेलने लगा। उसने उन्हंे शतरंज का अच्छा खिलाडी बना दिया। मई, 1893 को नेटाल के बंदरगाह डर्बन पर जहाज ने लंगर डाल दिया। जहाज से उतरने पर चारो ओर के वातावरण से गांधीजी को यूरोपीय और भारतीयो के बीच भेदभाव का आभास हो गया।
दक्षिण अफ्रीका में भारत के मुसलमान व्यापारियो की संख्या सबसे अधिक थी। उसके अनुपात में हिन्दू , पारसी, और ईसाइयो, की संख्या कम थी। यूरोपीय गोरे भारतीयो को घृणा की दृष्टि से देखते थे। उन्हें काला कुली तिरस्कार सूचक नाम से पुकारते थे। अदालती कागजो में भी भारतीयो के लिये। कुली विशेषण जुडने लगा था। अपमान से बचने के लिये। भारतीय मुसलमान अपने को अरब, पारसी, एवं ईरानी कहने लगे थे।
भारतीयो के दक्षिण अफ्रीका में पहुॅचने का भी इतिहास है। जब गोरे दक्षिण अफ्रीका में बस गये। तब उन्हें वहाॅ के खनिज पदार्थो को निकालने और कृषि कार्य के लिये, मजदूरो की आवश्यकता पडी। वहाॅ रहने बाले अफ्रीकी जुलू इस कार्य के लिये योग्य नही पाए गये। वे स्वभाव से सुस्त थे, मजदूरी नही करना चाहते थे। अंग्रेजो का ध्यान भारतीयो की ओर गया। उन्हे विश्वास था, कि गरीब भारतीय मजदूर आसानी से राजी हो जाएॅगे। अतः ब्रिटिश उपनिवेशो ने भारत सरकार से मजदूर भेजने की प्रार्थना की। उन्होने यह शर्त रखी कि मजदूर 5 बर्ष के शर्तनामें पर अफ्रीका आएॅ और अवधि पूरी हो जाने पर चाहे तो भारत लौट जाये। अथवा दक्षिण अफ्रीका में रहकर 5 बर्ष के लिये। पुनः प्रतिज्ञाबद्ध हो जाये। और लौटने के लिये वापसी किराया देने की भी शर्त थी। जो भारतीय अफ्रीका में बसना चाहे, उन्हें किराये। के मूल्य की जमीन देकर बसने की भी छूट थी। इस शर्तनामें के अनुसार जो भारतीय कुली दक्षिण अफ्रीका गएॅ, वे गिरमिटिया कहलाये। उनकी पहली टोली सन 1860 में दक्षिण अफ्रीका पहुॅची। धीरे धीरे भारतीय व्यापारी भी अफ्रीका पहुॅचने लगे। भारत सरकार ने गिरमिटियो के साथ भेदभाव न बरतने और उन्हें स्थानीय कानून के अन्तर्गत बराबरी का दर्जा दिये। जाने की शर्त रखी थी। ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया ने सन 1858 में यह घोषणा जारी की थी कि हमारे भारतीय सामा्रज्य के नागरिको वे सब अधिकार प्राप्त होगे, जो हमारे अन्य सब प्रजाजन को प्राप्त है। भारतीय नेटाल में ही नही, आरेंजफ्री, स्टेट, ट्रांसवल, और केप प्रांत में भी गएॅ और व्यापार करने लगे।
दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय अपने परिश्रम से अनाज,फल, सब्जी, आदि।की अच्छी खेती करते और सस्ते दामो में उन्हें बेचते थे। इससे उन्हें लाभ होता था।गोरे व्यापारियो को उनसे ईष्र्या होती थी। अतः उन्होने अपनी सरकार से भारतीयो पर अनेक प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
गांधीजी को भारतीयो के प्रति होने बाले भेदभाव के बिरुद्ध कडा संघर्ष करना पडा। आए तो थे। एक बर्ष में सेठ अब्दुल्ला के मुकदमें को निपटाने के लिये। पर उन्हें वहाॅ समस्त भारतीयो को उनके नागरिक अधिकार दिलाने के लिये, 21 बर्ष से अधिक समय तक रुकना पडा। उन्होन 1914 में अफ्रीका से अन्तिम विदाई ली थी।
1- वास्को डि गामा 1948 ई0 को भारत के पश्चिम समुद्री तट कालीकट पहुॅचा। कालीकट के राजा जामोरिन ने उसका स्वगत किया।
2-डचो ने भारत में स्वर्ण मुद्रा चलाई थी जिसका नाम पगोडा था।
3-1664 ई0 में फ्रांस में भारत के साथ व्यापार करने के लिये। द इंद ओरिएंताल नामक कम्पनी का निमार्ण किया गया।
4-महालवाडी व्यवस्था में किसान का भूमि पर अधिकार नही रहता था।