
चूंकि त्रिपाठी सपा से कांग्रेस में और लोकसभा चुनाव के दौरान ऐन वोटिंग से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा मानती है कि यही वजह थी कि सतना लोकसभा सीट भाजपा काफी कम वोटों के अंतर से जीत पाई। लिहाजा इसी की भरपाई त्रिपाठी को टिकट देकर की गई है। स्थानीय नेता त्रिपाठी के पक्ष में तो नहीं हैं, लेकिन खुलकर विरोध भी नहीं कर रहे। अब पार्टी की मुश्किल यह है कि जातिगत समीकरणों को किस तरह साधा जाए। खास तौर से पटेल समुदाय को।
कांग्रेस ने इसी समुदाय से मनीष पटेल को प्रत्याशी बनाया है। इस समय पार्टी पर यह आरोप भी लग रहा है कि वह क्षेत्र में ब्राह्मणों को आगे बढ़ा रही है। प्रत्याशी, प्रभारी मंत्री, कलेक्टर, एसपी से लेकर संगठन मंत्री चंद्र शेखर झा और खुद संगठन महामंत्री मेनन भी ब्राह्मण हैं। मैहर विधानसभा सीट में ब्राह्मण और पटेल समाज के लोग संख्या में सबसे ज्यादा हैं। इसलिए दोनों दल भाजपा और कांग्रेस इन समाजों में आवाजाही बढ़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने दलित वर्ग के रैदास आश्रम का स्मारक बनाने की घोषणा हाल ही में करके इस समुदाय की तरफ कदम बढ़ाए हैं तो पूर्व सांसद सुखलाल कुशवाहा के बेटे सिद्धार्थ कुशवाह को कांग्रेस ने चुनाव में उतार दिया है।
चार बार ब्राह्मण ही रहे विधायक
मैहर में चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, बीते चार चुनावों से ब्राह्मण ही विधायक ही रहे हैं। यहां 35 हजार से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं। इतने ही पटेल (कुर्मी) वोटर हैं। अन्य में कुशवाहा, आदिवासी, साहू आदि हैं। मैहर से वर्ष 1998 में वृंदावन बड़गैया जीते। 2003 में सपा से नारायण त्रिपाठी जीते। 2008 में भाजपा के मोतीलाल तिवारी विजयी रहे थे।