राकेश दुबे@प्रतिदिन। हर राजनीतिक दल के घोषणा पत्र का अनिवार्य विषय टैक्स का सरलीकरण होता है, जिस घोषणा पत्र से मोदी सरकार बनी और चल रही है उसका भी था. पिछले वर्ष सरकार टैक्स सरलीकरण की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाई ।
ग्लोबल कसंल्टिंग फर्म डेलॉइट ने एशिया पेसिफिक टैक्स कॉम्प्लेक्सिटी सर्वे में बताया है कि एशिया में भारत सबसे जटिल टैक्स नियमों वाला देश है और निवेशकों के लिए यही सबसे बड़ी चिंता की बात है। सर्वे में शामिल ८१ प्रतिशत लोगों का मानना है कि भारत में टैक्स नियम काफी कठोर हैं। इसीलिए इन दिनों दुनिया के आर्थिक संगठन और अर्थविशेषज्ञ एक स्वर में यह कह रहे हैं कि भारत में २०१६ में आर्थिक विकास के लिए सबसे पहले टैक्सेशन और कारोबार प्रतिकूलताओं को दूर करना होगा।
इसी तरह अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम द्वारा जारी किए गए 'डूइंग बिजनेस इंडेक्स' में भी कहा गया है कि उद्योग-कारोबार चलाने के मद्देनजर टैक्सेशन संबंधी कठिनाइयों की दृष्टि से भारत में कारोबार की राह दूसरे देशों की तुलना में अधिक निराशाजनक है। ऐसे में वर्ष २०१६ में सरकार को यह साफ-साफ ध्यान रखना होगा कि जब तक देश में टैक्स सरलीकरण नहीं होगा, तब तक विदेशी उद्यमियों के लिए भारत आना तथा देसी उद्यमियों द्वारा अच्छा कारोबार करना एवं निर्यात बढ़ाना आसान नहीं होगा। इनके साथ-साथ टैक्स से जुड़े वित्तीय विभागों और नियामक संस्थाओं को जवाबदेह बनाने की भी जरूरत है। भारत के लिए यह भी जरूरी है कि वह निजी और बहुपक्षीय निवेश को बढ़ावा देने के लिए टैक्स सरलीकरण की दृष्टि से कारोबार के अनुकूल नजर आए। देश का कारोबारी माहौल सुधारते हुए विदेशी निवेशकों को विश्वास दिलाना होगा कि भारत में विदेशी निवेश सुरक्षित व आकर्षक बना हुआ है। केंद्र को विश्व बैंक के उन सुझावों पर भी गौर करना होगा, जिनमें कहा गया है कि भारत में टैक्स नियम और वित्त क्षेत्र में सुधार किए जाने चाहिए।