
मामले की शिकायत पहले ईओडब्ल्यू में की गई, लेकिन जब राजनीतिक दबाव के चलते कोई कार्रवाई नहीं हुई तो याचिकाकर्ता उच्च स्तरीय जांच के निर्देश जारी कराने की मांग के साथ हाईकोर्ट आ गया।
न्यायमूर्ति आलोक आराधे की एकलपीठ में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता समाजसेवी एसके जैन की ओर से पक्ष रखते हुए दलील दी गई कि नगर परिषद राहतगढ़ सागर की पूर्व अध्यक्ष उमा तिवारी के पति पप्पू तिवारी ने बीपीएल कार्ड बनवाया था। 2004 में पप्पू तिवारी ने नगर परिषद का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
हालांकि इसके बाद 2009 में चुनाव लड़कर उनकी पत्नी उमा तिवारी नगर परिषद अध्यक्ष बन गईं। इस दौरान नामांकन-पत्र के साथ जो शपथपत्र जमा किया गया, उसमें उमा तिवारी द्वारा खुद के गरीबी रेखा के नीचे होने की जानकारी दी गई। इसी तरह की जानकारी पूर्व में पप्पू तिवारी ने भी अपने नामांकन पत्र में दी थी।
चुनाव लड़ते वक्त गरीब थे, जीतने के बाद अमीर हो गए
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि जो पति-पत्नी चुनाव लड़ते वक्त गरीब थे, बाद में चंद सालों के भीतर ही करोड़पति बन गए। जाहिर सी बात है कि बड़े पैमाने पर काली कमाई अर्जित किए बिना ऐसा संभव नहीं। यह आरोप इसलिए भी लगाया गया क्योंकि दोनों के पास अकूत संपदा अर्जित करने के खुलेतौर पर कोई स्पष्ट स्रोत नहीं हैं।