राकेश दुबे@प्रतिदिन। जब जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की कोई बड़ी पहल की गई, उसके तुरंत बाद पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने भारत में किसी बड़ी वारदात को अंजाम दिया। इसकी प्रतिक्रिया में संबंध सुधारने की प्रक्रिया थम जाती रही, भारत, पाकिस्तान से आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता। पाकिस्तान जवाब में कुछ गोलमोल बातें और आधी-अधूरी कार्रवाई करता। इससे भारत-पाकिस्तान के रिश्ते वहीं पहुंच जाते, जहां से वे शुरू हुए थे। आतंकवादी वारदात के पीछे मंशा भी यही होती है। कुछ वक्त बाद फिर वही प्रक्रिया नए सिरे से शुरू होती है। इस बार कुछ नया हुआ है। यह सरकार पाकिस्तानियों के कश्मीरी हुर्रियत कांफ्रेंस नेताओं से मिलने की जिद की वजह से बातचीत रद्द करती रही, लेकिन इस बार इतने बड़े आतंकी हमले के बाद भी उसने उस प्रक्रिया को रोकने की बात नहीं की, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाहौर जाने से तेज हुई थी। सरकार पर पाकिस्तान से संवाद रोकने का भारी दबाव रहा होगा, लेकिन उसने संवाद बंद करने का कदम नहीं उठाया है।
इसके बदले सरकार पाकिस्तान पर दबाव डाल रही है कि वह पठानकोट हमले के दोषियों पर ठोस कार्रवाई करे। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी पाकिस्तान पर कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाया है। जिस आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद पर पठानकोट हमले का आरोप है, उसे आईएसआई का संरक्षण प्राप्त है। पिछले कुछ वक्त में जो आतंकवादी संगठन सबसे ज्यादा फला-फूला है, वह जैश-ए-मोहम्मद है। बताया जाता है कि उसे भारी पैसा मिला है और जगह-जगह उसके ठिकाने बन गए हैं। जैश-ए-मोहम्मद पर पाकिस्तान में कोई बंदिश नहीं है और वह खुलेआम अपनी गतिविधियां चला रहा है।
ऐसे मे, जैश के खिलाफ कार्रवाई तभी हो सकती है, जब पाकिस्तान पर लगातार दबाव कायम रहे। पश्चिमी देश भी जैश को लेकर सशंकित हैं, क्योंकि उसके अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से संबंध हैं और वह सारी दुनिया में कथित जिहाद फैलाना चाहता है। भारत एक ओर राजनयिक स्तर पर दबाव बनाते हुए यह भी संकेत देना चाहता है कि वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान में गुप्त कार्रवाई कर सकता है। इस सिलसिले में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का बयान कुछ ऐसा ही संदेश देता हुआ दिखता है। साथ ही, यह भी संकेत दिया जा रहा है कि भारत अगर ऐसी कार्रवाई करता है, तो अमेरिका का प्रोत्साहन उसे मिल सकता है। इसके लिए भारत की तैयारी कितनी है, यह कोई नहीं जानता, लेकिन पठानकोट हमले ने यह दिखा दिया है कि भारत को अपनी सुरक्षा तैयारियों को ज्यादा चाक-चौबंद बनाने की जरूरत है।