राकेश दुबे@प्रतिदिन। यूँ तो भारत की किशोर आबादी करीब 25 करोड़ 30 लाख है। 15-19 आयु वर्ग के किशोरों में 56 प्रतिशत किशोरियां व 30 प्रतिशत किशोर लड़के एनीमिक हैं। मतलब हर दूसरी लड़की व हर तीसरे लड़के में खून की कमी (अल्परक्तता) है। किशोरावस्था (10से 19 आयु वर्ग) में आयरन की कमी, एनीमिया का खतरा बहुत ज्यादा होता है। लड़कियों में मासिक (पीरियड) के कारण एनीमिया का खतरा और भी बढ़ जाता है।
एनीमिया के कारण लड़कियों के शारीरिक विकास की गति को धीमाकर, उन्हें थका हुआ और बेदम बनाकर उनकी रोजाना के कामकाज में खर्च होने वाली ऊर्जा को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को प्रभावित हो रही है।
भारत में कुप्रथाओं के चलते भी लड़कियां/किशोर मां एनीमिक हो जाते हैं| एक मां के एनीमिक होने का रुग्णावस्था और मां व बच्चे की मौत तक से संबंध है| इसमें गर्भ गिरने का खतरा, मृत बच्चे का जन्म, वक्त से पहले बच्चे का जन्म, कम वजन वाले बच्चे का पैदा होना सरीखे खतरे भी शामिल हैं|
प्रसवकाल के दौरान महिलाओं की होने वाली मौत में 35 से 40 फीसद महिलाएं पोस्ट पार्टल हैम्ब्रेज (पीपीएच) यानी तेज गति से ब्लीडिंग होने के कारण जान गंवा रही हैं|डाक्टरों के मुताबिक कई बार एनीमिया के कारण भी अधिक ब्लीडिंग का खतरा रहता है| एनीमिया का प्रभाव अंतर पीढ़ीगत पड़ता है,एनीमिया का एक बहुत बड़ा कारण आयरन की कमी है|
एनीमिया से बाल्यावस्था में शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है| किशोरावस्था में शैक्षणिक प्रदर्शन खराब होता है, आदर्शत: किशोरावस्था एक स्वस्थ यानी सेहतमंद अवधि है, लेकिन देश में पिछले 50 वर्षो में छोटे बच्चों की तुलना में किशोर उम्र वालों के स्वास्थ्य में कम सुधार देखा गया है|
हर साल 10-24 आयु वर्ग के 26 लाख से अधिक युवा अधिकांशत: ऐसे कारणों से मरते हैं, जिन्हें रोका जा सकता है| नेशनल फेमिली हेल्थ सव्रे-3 (2005-6) से पता चलता है कि 15-19 आयु वर्ग की 56 व 30 प्रतिशत लड़के एनीमिया से पीड़ित हैं| लड़कियों की लगभग आधी आबादी (47 प्रतिशत) व 58 प्रतिशत लड़के पतले हैं|
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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