
जस्टिस जे. चेलमेश्वर और एके सिकरी की खंडपीठ ने शुक्रवार को पिछले साल दिए गए फैसले के उस पैरे को हटाने का निर्देश दिया जिसमें यह गलती हुई है। अदालत ने कहा है कि जब वह गलती मालूम पड़ गई है तो उसे ठीक किया जाए। खंडपीठ ने कहा कि इसलिए इस संबंध में समीक्षा याचिकाओं को अनिवार्य रूप से अनुमति देनी होगी। सेंट्रल बैंक के प्रबंध निदेशक और चेयरमैन समेत विभिन्न बैकों की कई याचिकाओं को अनुमति देते हुए खंडपीठ ने सरकारी वकील मुकुल रोहतगी की दलील सुनी।
सरकारी वकील के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि रिकार्ड में दर्ज पहली गलती यह हुई कि 5700 प्रति माह से कम वेतन पाने वालों को प्रमोशन में आरक्षण मिलेगा। इसके अलावा, यह बताते हुई दूसरी गलती हो गई कि प्रोन्नति के हकदार लोग वहीं होंगे जिनकी वेतनमान स्केल-1 से स्केल-6 तक होगा। रोहतगी ने बताया कि इस फैसले में मूलभूूत गलती के तहत सामने आया कि एससीएसटी कर्मी को एक विशेष वर्ग में आरक्षण दिया गया है। लेकिन फैसले के इससे पहले वाले पैराग्राफ में बताया गया कि ग्रुप-ए के पद में चयन से आरक्षण का प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह विवादास्पद फैसला पिछले साल 9 जनवरी को लिया था।