एल.एस. हरदेनिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बार-बार यह दावा करते हैं कि मध्यप्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं रहा है। पूर्व में चौहान के इस दावे का समर्थन भाजपा के पूर्व दिग्गज नेता एल.के. आडवानी भी करते थे। आडवानी कहते थे कि गुजरात तो पहले से ही विकसित राज्य था यदि मोदी ने उसका और विकास किया है तो यह बड़ी बात नहीं है। असली करिश्मा तो चौहान ने दिखाया है, जिसने मध्यप्रदेश को बीमारू राज्यों की श्रेणी से निकाल कर ऊपर उठा लिया है।
परंतु अभी हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे यह लगता है कि मध्यप्रदेश बीमारू राज्य तो है ही, इस समय वह सख्त बीमार है। कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के पेटलावाद नाम के एक कस्बे में एक विस्फोट हुआ था। इस विस्फोट में लगभग 90 लोग मारे गए थे। विस्फोट का कारण जिलेटिन, जो नलकूपों को खोदने के काम आता है, अत्यधिक लापरवाही के साथ रखा गया था। किन्हीं कारणों से विस्फोट हो गया और जहां वह रखे गए थे वहां के लोग तो मारे ही गए परंतु पास में एक छोटा बाजार था उस बाजार में सुबह-सुबह नाश्ता, पानी करने वाले लोग भी मारे गए और उनकी संख्या 90 हो गई। बाद में बताया गया कि जो व्यक्ति उन्हें आबादी वाले इलाके में रखा हुआ था वह स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़ा हुआ था। यह घटना इतनी वीभत्स थी कि उसके कारण भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा के उपचुनाव में ऐसी सीट खो दी जिस पर उसका कब्जा था।
पेटलावाद के लोगों में इतना आक्रोश था जिस दिन मुख्यमंत्री वहां गए तो गुस्साए लोगों ने उन्हें कार से खींचकर बाहर निकाला था और उन्हें फर्श पर बैठकर आक्रोशित लोगों की बात सुनने के लिए मजबूर किया गया था। उसके बाद वे लगभग ऐसे 40 परिवारों के सदस्यों से मिलने गए थे जिनके घर में इस दुर्घटना से कोई न कोई सदस्य मारा गया था। इस सब के बावजूद भाजपा वहां चुनाव हार गई।
इस घटना से दुखी लोगों के आंसू अभी पूरी तरह से पोंछे ही नहीं गए थे कि एक और दुर्घटना मध्यप्रदेश में हो गई। यह घटना भी उतनी ही दुखद और त्रासदीपूर्ण थी, शायद पेटलावाद की घटना से ज्यादा। क्योंकि पेटलावाद की घटना से जो लोग मारे गए वे एक तरह से उस पीड़ा से मुक्त हो गए थे जो यदि वे जिंदा रहते तो उन्हें भोगनी पड़ती। परंतु इस घटना में तो अनेक लोगों ने अपनी ज्योति खो दी और वे लगभग अंधे हो गए हैं। और इस तरह अब उन्हें दूसरों पर निर्भर होकर अपनी जिंदगी बितानी पड़ेगी। यह घटना मध्यप्रदेश के बड़वानी नामक स्थान में हुई। जहां पर बड़ी संख्या में मोतियाबिंद से पीडि़त लोगों की सर्जरी की गई थी।
सर्जरी के बाद जिन लोगों के आपरेशन हुए थे उन्हें आंख में अनेक प्रकार की तकलीफें महसूस हुईं। ज्यों ही उन्हें विभिन्न प्रकार की तकलीफें महसूस हुईं वे बड़े विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास गए, जिन्होंने जांच में पाया कि उन लोगों की देखने की शक्ति लगभग खत्म हो गई है।
बड़वानी में एक विशेष कैंप आयोजित किया गया था जिसमें लगभग 40 लोगों की सर्जरी की गई थी। जो लोग इस तरह के विशेष शिविरों में इलाज करवाते हैं, वे गरीब होते हैं। क्योंकि इस समय मोतियाबिंद का इलाज करवाना एक महंगा काम है। उन लोगों ने जिनकी सर्जरी हुई थी अपनी पीड़ा की बात विशेषज्ञ डॉक्टरों को बताई तो उन्हें इन्दौर शहर के बड़े अस्पतालों में इलाज के लिए भेजा गया। मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े डॉक्टर पंडित का कहना है कि यह अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, ''मैंने इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं।ÓÓ यह घटना इतनी त्रासदीपूर्ण है कि जिसकी गंूज न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश में फैल गई है। और मध्यप्रदेश सरकार का सिर शर्म से झुक गया है। आखिर यह घटना हुई क्यों?
विधानसभा में यह मुद्दा जोर-शोर से उठा। कांग्रेस के एक विधायक रामनिवास रावत ने यह दावा किया कि असली अपराधी वे निम्न स्तर की दवाईयां हैं जो खरीदी गईं थीं। एक सदस्य ने तो यह आरोप लगाया कि जो कंपनी इन दवाईयों को बनाती है उस प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नजदीकी संबंध हैं। एक सदस्य ने यह भी दावा किया जिस कंपनी से यह दवाईयां खरीदी गई हैं उसे पहले से ही ब्लैकलिस्ट घोषित कर दिया गया है।
सदस्यों का कहना था कि वर्तमान सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं है। वे सरकार के आदेशों की परवाह भी नहीं करते हैं और समय-समय पर जारी आदेशों की अवहेलना भी करते हैं। यह भी आरोप लगा कि मध्यप्रदेश में जितने डॉक्टर चाहिए उससे आधे ही डॉक्टर हैं। इसलिए स्वास्थ्य की जो देखरेख होना चाहिए वे पूरी तरह से नहीं हो पा रही है।
इस बीच भोपाल से प्रकाशित एक बड़े समाचारपत्र ने एक सर्वेक्षण किया, यह जानने के लिए कि प्रदेश के अन्य स्थानों के आपरेशन थियेटर की स्थिति क्या है। इस सर्वेक्षण से पता लगा कि कुछ ही आपरेशन थियेटरों को छोड़कर सभी की हालत खस्ता है। उनकी हालत इतनी खराब है कि उनमें सर्जरी की ही नहीं जानी चाहिए। यह एक आपराधिक उपेक्षा है, जो सरकार को मालूम है। परंतु इसके बावजूद सरकार ने उसे ठीक करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इस बीच मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है कि जब तक सभी आपरेशनों की स्थिति पता नहीं लगती है अगली सूचना तक प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में आपरेशन बंद रहेंगे।
पीडि़त लोगों के इलाज के लिए राज्य के विभिन्न विशेषज्ञों के अलावा, ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ भी बुलाए गए और इन विशेषज्ञों ने पीडि़त रोगियों की जांच कर यह संभावना प्रकट की है कि शायद एक भी व्यक्ति की ज्योति बचाई नहीं जा सकेगी। इन डॉक्टरों ने यह भी पाया कि बड़वानी के आपरेशन थियेटर में जो उपकरण थे उनकी हालत बहुत खराब थी। एक-दो उपकरणों में तो जंग भी लगी पाई गई।
असली बात यह है कि अब सरकारी अस्पतालों में सिर्फ गरीब लोग ही इलाज करवाते हैं। बड़े अधिकारी, मंत्री, सांसद, विधायक, प्राईवेट नर्सिंग होम में ही इलाज करवाते हैं। इसलिए सरकारी अस्पतालों का रखरखाव सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है। इन दोनों घटनाओं से यह पुन: सिद्ध होता है कि मध्यप्रदेश अभी भी न सिर्फ बीमारू बल्कि सख्त रूप से बीमार राज्य है। बीमारू राज्यों में बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश भी शामिल हैं।
इनमें से यह बार-बार दावा किया जाता है कि सिर्फ मध्यप्रदेश ही बीमारू राज्य की श्रेणी से ऊपर उठ गया है। न सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी मध्यप्रदेश अभी भी पिछड़ा है। कृषि उत्पादन के मामले में दावा किया जाता है कि इस समय मध्यप्रदेश नंबर एक पर है। अभी हाल में किसानों का एक प्रदर्शन भोपाल में हुआ था, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि पिछले तीन वर्षों में मध्यप्रदेश में कृषि उत्पादन कम हुआ है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश आंकड़ों की हेराफेरी कर कृषि के क्षेत्र में प्रथम राज्य होने के लिए सम्मान भी प्राप्त कर रहा है। किसानों की आत्महत्या के मामले में भी मध्यप्रदेश काफी आगे है। महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों के मामले में भी मध्यप्रदेश पीछे नहीं है। गुमशुदा बच्चों की संख्या में भी दूसरों राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश आगे है।
इन सब स्थितियों के होते हुए यह कैसे कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं है?