राकेश दुबे@प्रतिदिन। सुप्रीमकोर्ट के फैसले ने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या के मामले में चल रही राजनीति पर पूर्ण विराम लगा ही दिया |सच तो यह है कि कांग्रेस की दिलचस्पी राजीव के हत्यारों को फांसी की सजा दिलाने के बजाए सत्ता बचाने में रही| यह देश से छिपा नहीं है कि कांग्रेस सत्ता को बचाने के लिए जयललिता और एम करुणानिधि के आगे अंत तक नतमस्तक रही| तमिल मसले पर जिस तरह वह इन दोनों दलों के आगे घुटने टेकती रही उसी का कुपरिणाम है कि हत्यारे फांसी से बच निकले, लेकिन एक सच यह भी है कि अगर जयललिता हत्यारों की रिहाई की मांग नहीं करती तो द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि हत्यारों की रिहाई की मांग करते और वैसा ही राजनीतिक बवंडर खड़ा करते जैसा कि जयललिता ने किया, वैसे करुणानिधि ने कभी भी जयललिता के फैसले का विरोध नहीं किया|
यह दर्शाता है कि दोनों दलों और उनके नियंताओं के सोच में कोई बुनियादी फर्क नहीं है| जिस तरह दोनों दलों ने श्रीलंका में तमिलों के उत्पीड़न को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अमेरिका द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर मनमोहन सरकार को असहज करने की चेष्टा की वह देश-दुनिया से छिपा नहीं है, लेकिन अचरज की बात यह कि जब उच्चतम न्यायालय ने हत्यारों की फांसी को उम्रकैद में तब्दील किया और जयललिता ने लाभ के लिए उनकी रिहाई की कोशिश तेज की तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ट्वीट किया कि “हमारे पूर्व प्रधानमंत्री के सात हत्यारों की रिहाई न्याय के सभी मूल्यों के खिलाफ है”|क्या बेहतर नहीं होता कि मनमोहन सिंह ने ट्विट के जरिए रुदन गान के स्थान दया याचिकाओं को समय से निपटाया होता, अब उचित होगा कि सभी सियासी दल अदालत के फैसले के बाद आतंकवाद पर सियासत बंद करें|
मौजूदा केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि मौत की सजा पाए ऐसे सभी आरोपितों की दया याचिकाओं का तत्काल निस्तारण करे,यह उचित नहीं कि कोई हत्यारा दो-ढाई दशक तक कारावास का दंड भोगे और फिर उसे मौत की सजा दी जाए| यह न्याय सिद्धांत और मानवता दोनों के विरुद्ध है. अगर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार राजीव गांधी के हत्यारों के मसले पर राजनीति करने के बजाए समय से दया याचिकाओं का समय पर निपटारा कर देती तो तो हत्यारों को मौत की सजा मिलनी तय थी| जब तमिलनाडु सरकार ने हत्यारों की रिहाई की बात की तो राहुल गांधी ने कहा था कि “यदि कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री की हत्या करे और रिहा कर दिया जाए तो किसी आम आदमी को इंसाफ कैसे मिलेगा?” उचित होता कि राहुल इस तरह का सवाल देश के सामने रखने के बजाए अपनी पार्टी और यूपीए सरकार से पूछे होते?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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