
डॉक्टर ब्रह्मदेव वो शख्स थे जिन्हें सरकार ने नक्सलियों के साथ बात करने के लिए मध्यस्था करने के लिए भेजा था. दरअसल 2012 में नक्सलियों ने तत्कालीन कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन को अगवा कर लिया था.
इस घटना ने सरकार को हिला कर रख दिया था. नक्सली भी सरकार की ओर से कोई बात नहीं सुनना चाहते थे. ऐसे में जब बातचीत की संभावना बनी तो सरकार ने डॉक्टर ब्रह्मदेव को नक्सलियों का समझाने और कलेक्टर को आजाद करवाने की जिम्मेदारी सौंपी. जिसमें उन्हें सफलता भी हासिल हुई.
300 रेप पीड़ित आदिवासी लड़कियों को एक साथ दिया न्याय
डॉक्टर ब्रह्मदेव को बैलाडीला के एक चर्चित कांड से भी जाना जाता है, जिसमें उन्हें करीब 300 आदिवासी लड़कियों की गैर जनजातीय पुरुषों से करवा दी थी.
दरअसल, 1968 के दौरान जब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ एक था. उस समय डॉक्टर ब्रह्मदेव बस्तर कलेक्टर थे. निरीक्षण के दौरान उन्हें पता चला कि बैलाडीला में लौह अयस्क की खदानों में काम करने गए गैर जनजातीय पुरुषों ने शादी के नाम पर कई भोली-भाली आदिवासी युवतियों का दैहिक शोषण किया और फिर उन्हें छोड़ दिया.
जिससे कई आदिवासी युवतियां गर्भवती हो गई और कुछ के तो बच्चों ने जन्म भी ले लिया था. ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर ब्रह्मदेव ने ऐसी तमाम आदिवासी युवतियों का सर्वे कराया और उनके साथ यौन संबंध बनाने वाले लोगों, जिनमें कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी थे, को बुलाकर कह दिया कि या तो इन युवतियों को पत्नी के रूप में स्वीकार करो या आपराधिक मुकदमे के लिए तैयार हो जाओ.
आखिर डॉक्टर ब्रह्मदेव के सख्त तेवर देख सबको शादी के लिए तैयार होना पड़ा और 300 से अधिक आदिवासी युवतियों की सामूहिक शादी करवाई गई.
इस घटना और बस्तर में रहते हुए डॉक्टर ब्रह्मदेव का आदिवासियों से गहरा लगाव हो गया. यहां तक की आदिवासी भी उनसे गहरा लगाव रखने लगे.
केंद्र के खिलाफ लड़ाई
आदिवासियों को नुकसान से बचाने के लिए ऐसे कई मौके आए जब डॉक्टर ब्रह्मदेव सरकार के खिलाफ खड़े हो गए. 1973-74 में वो केन्द्रीय गृह मंत्रालय में निदेशक बने और फिर संयुक्त सचिव भी.
इस दौरान सरकार बस्तर में जनजातीय इलाके में विश्व बैंक से मिले 200 करोड़ रुपये की लागत से 15 कारखाने लगाए जाने की योजना लाई. जिसका डॉक्टर ब्रह्मदेव ने खुलकर विरोध किया.
उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इससे सालों से उन इलाकों में रह रहे जनजातीय लोग दूसरे क्षेत्र में पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जो सही नहीं है. लेकिन सरकार उनसे सहमत नहीं हुई. आखिरकार 1980 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को नौकरशाही से आजाद कर लिया.
इस घटना के बाद वो व्यक्तिगत रूप में आदिवासियों की बेहतरी के लिए काम करने लगे. आदिवासियों के लिए इतना संघर्ष और उनके लिए लगातार काम करते रहने ने ही डॉक्टर ब्रह्मदेव को आदिवासियों का मसीहा बना दिया.