37 मरीज अंधे हो गए, शर्म करो शिवराज

इंदौर। बड़वानी हादसे की हलचल भोपाल से दिल्ली तक है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) दिल्ली की टीम रविवार को इंदौर के अरबिंदो मेडिकल कॉलेज पहुंची। विशेषज्ञों ने 45 मरीजों की जांच के बाद कहा- 37 मरीजों की एक आंख की रोशनी अब कभी नहीं लौट सकती। छह मरीजों में संक्रमण कम है। इनके लिए मामूली-सी उम्मीद है। रविवार को चार नए मरीज इंदौर पहुंचे। इनकी संख्या बढ़कर 47 हो गई है।

इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मरीजों को राहत की रकम दो-दो लाख रु. कर दी है। मगर बड़ा सवाल बरकरार है कि दोषी अफसर-डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होगा या नहीं। राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम दिल्ली की टीम भी बड़वानी पहुंच रही है। फंड को लेकर सवालों के घेरे में आए कलेक्टर अजयसिंह गंगवार ने अब जाकर बड़वानी में नए ऑपरेशन थिएटर को बनाने की बात कही है।

कॉर्निया प्रत्यारोपण भी एक विकल्प
टीम के सदस्य डॉ. सुदर्शन खोकर ने माना कि मरीजों में संक्रमण ज्यादा हुआ है। 10-12 मरीज ऐसे भी हैं, जिनमें कॉर्निया प्रत्यारोपण एक विकल्प हो सकता है। यही एक उम्मीद है।

हादसे से पहले ही बचा जा सकता था 
भोपाल में क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान की सेवानिवृत्त डायरेक्टर और एलएन मेडिकल कॉलेज की वर्तमान डायरेक्टर डॉ. एस. बिसारिया ने बताया कि इस हादसे को पहले ही रोका जा सकता था। मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दो दिन बाद जब पहला मरीज आंख में संक्रमण की शिकायत लेकर आया था। डॉक्टर और जिला अस्पताल प्रशासन को उसी दिन अलर्ट होना था। उस समय संक्रमण प्राइमरी स्टेज में रहा होगा। अफसरों ने अगर उसी दिन सभी मरीजों की दोबारा जांच कराई होती, तो कई कुछ मरीजों की आंख की रोशनी बच जाती। सर्जरी के बाद आंख में संक्रमण होने पर कार्निया खराब नहीं होता। बल्कि आंख के पानी में मवाद बनने लगता है, जिसे एंटीबायोटिक्स की मदद से सुखा दिया जाता है। आंख में यह एंटीबायोटिक दवाएं इंजेक्शन के मार्फत पहुंचाई जाती है। इससे शिविर में ऑपरेशन कराने वाले 43 लोगों की आंखों की रोशनी नहीं जाती।

नेशनल ब्लाइंडनेस कंट्रोल प्रोग्राम की गाइडलाइन के तहत मोतियाबिंद के ऑपरेशन में मरीज को अस्पताल से तीन दिन बाद छुट्टी देने का नियम है। लेकिन, अधिकांश नेत्र रोग विशेषज्ञ मरीज को सर्जरी के दो घंटे बाद छुट्टी दे देते हैं। इससे ऑपरेशन के बाद आंख में संक्रमण होने का खतरा अगले डेढ़ सप्ताह तक बना रहता है।

20 दिन: 
16 से 21 नवंबर : 86 मरीजों के ऑपरेशन हुए। 
23 नवंबर: आंखों में जलन की शिकायत का पहला केस आया। डॉ. आरएस पलोड ने खुद ही संभालने की कोशिश की। 
25 नवंबर: 4 और केस आए। किसी ने गंभीरता नहीं बरती। केस बढ़ते गए। 
26 नवंबर: डॉॅ. आरएस पलोड के मुताबिक पहला मरीज इंदौर रैफर किया गया। 
28 नवंबर: कलेक्टर अजय गंगवार के मुताबिक उन्हें पहली बार बताया गया। मरीजों की तादाद 25 पार हुई। 
2, 3, 4 दिसंबर: मरीजों के ठिकानों पर जांच दल भेजे गए। 
6 दिसंबर: एम्स दिल्ली की टीम ने 43 मरीज देखे। चार नए मरीज जुड़े।

जांच के तीन निष्कर्ष
एम्स से विट्रो रेटिनल सर्जन डॉ. अतुल कुमार, डॉ. सुदर्शन समेत छह सदस्य इंदौर आए। जांच रिपोर्ट के मुख्य बिंदु-
1 आंखों में पस पाया गया है। ऑपरेशन में इस्तेमाल सलाइन का पानी एक साथ इतने मरीजों में इन्फेक्शन की वजह हो सकता है।
2 हो सकता है जिस कंपनी की दवा इस्तेमाल की गई उसमें गड़बड़ हो।
3 इन्फेक्शन के बाद मरीजों को जो दवाएं दी जानी चाहिए थीं, वह ठीक हैं।

बड़वानी में जांच की रस्में
जिला अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में रविवार को भी जांच की रस्में हुईं। अंधत्व निवारण कार्यक्रम भोपाल के नोडल अफसर डॉ. हेमंत सिन्हा ने चार घंटे व्यवस्थाओं का जायजा लिया। ड्रग निरीक्षक योगेश गुप्ता टीम के साथ पहुंचे। इन्होंने भी दवा के सैंपल लिए।

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