आरक्षण खारिज करने की याचिका पर फ़ैसले का समय तय

Bhopal Samachar
लखनऊ। जाटों को आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से जाट समाज में बेचैनी है। हाईकोर्ट ने प्रदेश में जाट आरक्षण खारिज करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में राज्य सरकार को आठ सप्ताह में विधिसम्मत फैसला लेने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राम सिंह बनाम भारत सरकार केस में 17 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों के जाटों को केंद्रीय सेवाओं में पिछड़े वर्ग का आरक्षण देने वाली यूपीए सरकार की अधिसूचना निरस्त कर दी थी। यूपीए सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें आरक्षण का लाभ दिया था। राजबीर और अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करके प्रदेश में जाटों को अन्य पिछड़े वर्ग की सूची से बाहर करने की मांग थी।

याची का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण देने को गलत ठहराया है, इसलिए राज्य सरकार प्रदेश में उन्हें आरक्षण देने पर विचार करने के लिए बाध्य है। हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण टंडन और जस्टिस विपिन सिन्हा की बेंच ने याचिका के तथ्यों पर विचार किए बिना राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर आठ सप्ताह में विचार कर विधिसम्मत निर्णय ले।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले जाट समाज में बेचैनी है। केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण खत्म होने के बाद से जाट समाज में आक्रोश है। इस मुद्दे पर लगातार पंचायतें हो रही हैं। केंद्रीय सेवाओं में जाट आरक्षण की मांग को लेकर 20 दिसंबर को हरियाणा के गोहाना में रैली होने जा रही है। इसमें बड़े आंदोलन की घोषणा हो सकती है।

रैली की तैयारियों के बीच प्रदेश में जाट आरक्षण पर विचार कर निर्णय लेने संबंधी हाईकोर्ट का फैसला आ गया। जाट समाज आशंकित है कि कहीं केंद्रीय सेवाओं की तरह वे प्रदेश में भी आरक्षण के लाभ से वंचित न हो जाएं।

अदालत में जाट आरक्षण की पैरवी करने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डीएस वर्मा का कहना है कि राम सिंह बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राज्यों में जाट आरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में राज्यों में आरक्षण विषय ही नहीं था।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कई राज्यों में पहले से जाटों को आरक्षण मिला हुआ है, इसलिए उन राज्यों को भी सुनवाई का मौका दिया जाए। इस पर अदालत ने टिप्पणी की थी कि याचिका का राज्यों में जाट आरक्षण से कोई संबंध नहीं है।

अदालत केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने वाली अधिसूचना की वैधता पर सुनवाई कर रही है। डीएस वर्मा का कहना है कि वर्ष 2000 से प्रदेश में लागू किए गए जाट आरक्षण को रश्मि पाल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और बल्देव सिंह बनाम तहसीलदार रामपुर के केस में चुनौती दी गई थी। दोनों ही याचिकाओं में हाईकोर्ट ने प्रदेश में जाट आरक्षण को सही ठहराया है।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!