सलमान के फैसले से सरकार सीखे

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@ प्रतिदिन। मुंबई हाईकोर्ट का फैसला कई सवाल खड़े करता है। सलमान खान पर आरोप यह था कि उन्होंने सितंबर 2002 में शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए पांच लोगों को कुचल दिया था। पिछले दिनों एक निचली अदालत ने सलमान को पांच साल की सजा सुनाई थी, जिस फैसले को हाईकोर्ट ने पलट दिया है। 

अदालत का कहना है कि सरकारी पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि सलमान खान ही गाड़ी चला रहे थे या उस रात वह शराब पिए हुए थे। अदालत के मुताबिक, सरकारी पक्ष यह भी साबित नहीं कर पाया कि सलमान की गाड़ी का टायर दुर्घटना की वजह से फटा था। बचाव पक्ष की दलील थी कि टायर फटने की वजह से दुर्घटना हुई। न्यायाधीश ने अपने फैसले में एक बात कही, जो महत्वपूर्ण है कि वह जानते हैं कि आम जनमानस में इस मामले को लेकर क्या सोचा जा रहा है, लेकिन अदालत का फैसला ठोस सुबूतों और गवाहियों के आधार पर होता है। 

न्यायाधीश ने जांच प्रक्रिया पर भी कई सवाल उठाए। सरकारी पक्ष का कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो, लेकिन उसमें भी वक्त लगेगा। मामले का फैसला हाईकोर्ट में होते-होते 13 साल बीत गए हैं। इस मामले में एक महत्वपूर्ण गवाह सलमान खान के निजी सुरक्षाकर्मी रवींद्र पाटिल थे, जिनकी 2007 में लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई। पाटिल ने ही यह गवाही दी थी कि गाड़ी सलमान चला रहे थे और वह शराब भी पिए हुए थे। हाईकोर्ट ने पाटिल की गवाही को विश्वसनीय नहीं माना। 

अगर मुकदमे की सुनवाई तेजी से हुई होती, तो पाटिल की गवाही और उनसे अदालत में जवाब-तलब संभव था। न्याय प्रक्रिया में देरी से अक्सर अपराधी को सजा मिलने या निर्दोष के छूटने में बड़ी बाधा खड़ी हो जाती है। दूसरा बड़ा सवाल पुलिस की तफ्तीश की प्रक्रिया को लेकर खड़ा होता है। किसी आपराधिक मामले की जांच और उसके सुबूतों को व्यवस्थित रूप से जमा करके पक्का मामला तैयार करना पेशेवर कौशल का काम है। 

भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में इस सिलसिले में काफी खामियां हैं। उनके पास कर्मचारियों की कमी है। जो कर्मचारी हैं, वे इस काम में अच्छी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं। मामले बरसों तक अदालत में लटके रहते हैं, इसलिए पुलिसकर्मियों पर बोझ बढ़ता जाता है और अपराधियों को सजा दिलवाने का उनका उत्साह खत्म हो जाता है।इन वजहों से हमारी जेलें विचाराधीन कैदियों से भरी रहती हैं। न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास बना रहे और अपराधियों को कानून का डर रहे, इसके लिए न्यायपालिका और सुरक्षा एजेंसियों में बड़े सुधारों की जरूरत है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 
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