दिल्ली भी बदतर होती जा रही है, लाइन में और भी शहर हैं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले कुछ दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है | एक चिकित्सक मित्र ने सवाल किया कि महीने में दिल्ली कितने दिन रहते हो ? मैंने कहा यही कोई 10 दिन उनका कहना था, ये 10 दिन आपके जीवन की यात्रा को हर बार 2 दिन कम कर रहे  हैं| 

चीन के पर्यावरण अलर्ट को पढ़ता था आज नासा की एक रिपोर्ट को देखा |  नासा के मुताबिक,  चीन में हार्बिन के लोग महसूस कर रहे हैं कि वहां हवा में प्रदूषणकारी ठोस पदार्थ और द्रव यानी फाइन पार्टिकुलर मैटर (पीएम.5) का जमाव प्रति क्यूबिक मीटर पर अत्यधिक लगभग 1000 माइक्रोग्राम है। अमेरिकी पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी की वायु गुणवत्ता मानक के अनुसार, पीएम २.५ प्रति क्यूबिक मीटर ३५  माइक्रोग्राम से कम होना चाहिए। इस हिसाब से हार्बिन को निर्धारित मानक के उच्च स्तर पर पहुंचने के लिए प्रदूषण में ९७  फीसदी कमी लाने की जरूरत है। दिल्ली में भी ऐसा ही महसूस होता है | किसी को भारत की राजधानी की चिंता नहीं है | अब गाड़ियों के सम और विषम नम्बरों की दलाली हो रही है |

नासा कहता है कि हार्बिन के अस्पतालों की रिपोर्ट के मुताबिक, सांस से संबंधित मरीजों की संख्या 30 फीसदी तक बढ़ी है और वहां प्रदूषण से बचाने के लिए मास्क बेचा जा रहा है। अमेरिकी गायक पैटी अस्टिन ने बीजिंग के धुंध भरे वातावरण को देखते हुए पिछले दिनों अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। अपनी वेबसाइट पर उन्होंने इसका कारण सांस लेने में हो रही दिक्कत बताया, जिस कारण उन्हें दमे का दौरा पड़ा। स्वच्छ ऊर्जा पर अमेरिका-चीन के संयुक्त सहयोग (जेयूसीसीसीई) के एक कार्यक्रम में पिछले दिनों शंघाई में पर्यावरण पर काम करने वाले तमाम कार्यकर्ता जुटे। पर वहां ज्यादातर लोग इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि चीन में कहां रहना चाहिए, बच्चों को बाहर कब भेजना चाहिए और किस तरह के भोजन और पानी पर भरोसा करना चाहिए? दिल्ली के बारे में भी ऐसा ही सोच बन रहा है |


यह सच है की चीन आर्थिक समृद्धि की अभूतपूर्व ऊंचाई पर  है, तो भी उसका कोई फायदा नहीं, क्योंकि ऐसे में लोग वहां रह ही नहीं पाएंगे। चीन की तेज तरक्की के कारण अगर बीजिंग के ४०  लाख लोगों के पास अपनी कार हो, लेकिन ट्रैफिक कभी न चले, तो क्या हालात होंगे? चीन की प्रति व्यक्ति आय में इजाफे से अगर वहां के लाखों गरीबों को दूध और मांस जैसे पौष्टिक आहार मिलने लगे, लेकिन उनकी गुणवत्ता पर भरोसा न किया जा सके, तो ऐसे विकास का क्या फायदा? अगर सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता रहे, पर सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु न हो, तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती है? यही सारे सवाल दिल्ली के हैं | और भारत के हर शहर के हैं |


श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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