
मंदिर से जुड़े समाजसेवी हरिमोहन गुप्ता ने बताया कि मंदिर का शिखर करीब 120 फीट ऊंचा है। उस पर सोने के पानी की परत चढ़ाई गई है। यहां पर काली माता, तारा देवी, छिन्न मस्त देवी, भैरवी माता, देवी धूमा वती, मां बगुलामुखी, कमला देवी, देवी भुवनेश्वरी, मातंगी मैया की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह के दाईं तरफ विष्णु भगवान और दूसरी ओर भोलेनाथ सपरिवार विराजमान हैं। गर्भगृह के सम्मुख श्रीयंत्र और मां भगवती की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते ही सफेद संगमरमर से निर्मित शेर की दो विशालकाय मूर्तियां दिखाई देती हैं। ये एक-दूसरे की तरफ मुंह करके बैठी हुई हैं।
प्रवेशद्वार पर मां जया और विजया की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार धातु का बना है, उस पर सुंदर नक्काशी की गई है। साथ ही मोर की प्रतिकृति भी बनाई गई है। प्रवेश द्वार के ऊपर गणेशजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा आशीर्वाद देते हुए मुद्रा में हैं। सभी देवी-देवताओं की प्रतिमा इतनी आकर्षक बनी हैं कि उनसे नजर ही नहीं हटती है। मंदिर के गर्भगृह में चांदी से निर्मित विमान है। उस पर मध्य में मां त्रिपुर सुंदरी, दाईं ओर लक्ष्मीजी और बाईं तरफ सरस्वती जी विराजमान हैं।
मंदिर की विशेषताएं
श्री राजराजेश्वरी ललिताम्बा मां त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा विशेष रूप से जयपुर से मंगवाई गई है। करीब सात क्विंटल वजनी देवी मां की प्रतिमा की ऊंचाई पांच फीट दो इंच है। प्रतिमा इस तरह से निर्मित की गई है कि उसमें मां का स्वरूप कुछ पलों के अंतराल में बदला हुआ प्रतीत होता है। देवी प्रतिमा के आसपास लाइट लगाई गई है, जिसकी रोशनी में मां त्रिपुर सुंदरी का अलौकिक रूप नजर आता है। यह प्रतिमा स्फटिक से बनाई गई है। बताया जाता है कि यहां जो सच्ची श्रद्धा से मां के दर्शन करने आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। मंदिर में प्रवेश करते ही मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मंदिर परिसर में सत्संग भवन भी है, जहां दो सौ व्यक्ति बैठ सकते हैं। भवन के पास ही शंकराचार्यजी का आश्रम है। आश्रम परिसर में ही यज्ञ शाला के अलावा, शिवजी, हनुमानजी, नवग्रह, कालभैरव, मां दुर्गा की प्रतिमाएं भी हैं।