कभी लग्झरी लाइफ जीते थे, फिर 75 हजार रुपए में बेचना पड़ा महल

धरती के रंग। जब देश में लोकतंत्र की साख बढ़ी और राजाओं ने अपने ठाठबाट से समझौता नहीं किया तो उनका क्‍या हश्र हुआ इसके उदाहरण हैं राजा ब्रजराज महापात्रा. उड़ीसा के टिगिरिया रियासत के राजा ब्रजराज महापात्रा को जीवन के अंतिम वर्षों में रिक्‍शा तक चलाना पड़ा.

ब्रजराज महापात्रा के पूर्वज राजस्‍थान के रहने वाले थे. उन्‍होंने उड़ीसा में जाकर टिगिरिया रियासत की नींव रखी थी. 15 अक्टूबर 1921 को जन्‍में ब्रजराज महापात्रा इस रियासत के आखिरी राजा थे.

कार का था शौक
टिगिरिया रियासत के राजा सुदर्शन महापात्रा के बाद 1943 में ब्रजराज की ताजपोशी की गई थी. जब राजा ब्रजराज पूरे रुआब पर थे तो उनके महल में 25 कारें लगी होती थीं.

राजा ब्रजराज ने छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के राजकुमार कॉलेज से डिप्‍लोमा किया था. जवानी में इस राजा को कार चलाने का बड़ा शौक था. वे अक्‍सर कार से फार्रटे भरकर कोलकाता की सैर पर जाते. उस दौर में ब्रजराज भारतीय बाजारों में आने वाली ज्‍यादातर नई कारों की सवारी करते थे.

जनता को पसंद थे राजा ब्रजराज
दिलचस्‍प बात यह है कि राजा ब्रजराज अय्याश जरूर थे, लेकिन उनका जनता से भी खासा लगाव था. बताया जाता है कि आजाद भारत में भी टिगिरिया के लोग ब्रजराज को राजा मानते थे. अक्‍सर मदद के लिए उनके पास आते थे. प्‍यार से लोग उन्‍हें राजा के बजाय दादा कहकर बुलाते थे.

75 हजार रुपए में बेचा महल
आजादी के बाद टिगिरिया रियासत के कुछ लोग राजनीति में चले गए, वहीं ब्रजराज ने इन सबसे दूरी बनाए रखी. अय्याशी और सरकार की सख्‍ती के चलते राजा ब्रजराज के आर्थिक हालात बेहद खराब हो गए. अपना गुजारा करने के लिए राजा ब्रजराज ने 1960 में 75 हजार रुपए में अपना महल सरकार को बेज दिया था. इसके बाद तो वे पूरी तरह सड़क पर आ गए.

नहीं पूरी हुई अंतिम इच्‍छा
आखिरी दिनों में एक झोपड़ी में रहते थे और रिक्‍शा चलाकर अपना गुजारा करते थे. 95 साल के इस राजा ब्रजराज की मौत झोपड़ी में ही हो गई. वे चाहते थे कि टिगिरिया के लोग 10-10 रुपए इक्‍ट्ठा कर उनका अंतिम संस्‍कार करें, लेकिन उनकी आखिरी इच्‍छा भी पूरी नहीं हुई.
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