धर्मेन्द्र पैगवार। दोस्तों एहसानफरामोशी तो जैसे लोगों की रग-रग में बस गई है। हमारे आसपास ही कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। एक दिन पहले स्वर्गीय अर्जुन सिंहजी की जयंती थी। वे तीन बार मप्र के मुख्यमंत्री रहे। वे लोगों की मदद करने में इतने उदार थे कि उनकी उदारता के किस्से अभी भी हमारे सीनियर पत्रकार सुनाते हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता से लेकर मदद करने के किस्से जगजाहिर हैं। कल उनकी जयंती थी। जिस विधानसभा को उन्होंने नई पहचान दी, वहां विशेष सत्र में किसी कांग्रेसी ने भी उन्हें याद नहीं किया।
2011 में जब उनका निधन हुआ तो उनका अस्थिकलश भोपाल आया था। उनके सी-19 बंगले पर कितने लोग थे, उस वक्त मैंने लोगों की अहसानफरामोशी देखी थी। प्रेस कांपलेक्स से लेकर भोपाल में हजारों लोगों को नौकरी और मकान, दुकान पटटे अर्जुन सिंह जी ने दिए थे, लेकिन उन्हें याद करने कितने लोग आए थे।
यह सब इसलिए लिख रहा हूं कि उन्होंने कई जीरो लोगों को हीरो बना दिया था। जिन सोनिया गांधी को बच्चों समेत इटली जाने से उन्होंने रोका था, उन्हीं ने उन्हें प्रधानमंत्री और बाद में राष्टृपति नहीं बनने दिया। यह भी अहसानफरामोशी थी। कई लोगों को उनकी क्वालिटी और मेहनत का फल नहीं मिलता है, उन्हीं में से एक अर्जुन सिंह जी थे।
किसी ने यह शेर ऐसे लोगों के लिए कहा है
इन हाथों से तराशे हुए पत्थर ऐ सनम
आज बुतख़ाने मे भगवान बने बैठे हैं।।
- श्री धर्मेन्द्र पैगवार भोपाल के प्रतिष्ठित पत्रकार हैं, इन दिनों हरिभूमि में सेवाएं दे रहे हैं।