अध्यापक आंदोलन: मैं बताता हूं, क्या हुआ था सीएम हाउस में

जावेद खान। दोस्तो कई बार दिल दुखता है कि हालात किस तरह से बदल जाते है। जिन पर भरोसा करो सबसे ज्यादा उन्ही के दखल आते है। अध्यापक आन्दोलन की आक्रमता ही आजाद अध्यापक संघ की पहचान है। 13 सितम्बर की सफलता के बावजूद हमारे जमीनी अध्यापक साथियों ने जब हम से कहा कि 90 प्रतिशत अध्यापक आजाद के साथ है पर कुछ लोग है जो कि आज भी अपने पुराने संगठनो के नाम पर असमंजस में है। उन्हे भी साथ लाने के लिए भाई आप सभी संघो को एक करो। हमने कहा यह भी ठीक है। इससे हमारी ताकत ही बढ़ेगी। बस यही हमारी सबसे बड़ी गलती साबित हुई।

अध्यापको के मुखर होते आन्दोलन का पैनापन उसी क्षण से अपनी धार खोता चला गया। हमने संयुक्त मोर्चा के लिए सभी घटकों को एक साथ लाने का काम किया लेकिन इनमें शामिल कुछ लोगो का सच यह है कि यह केवल और केवल वार्ता के शौकिन निकले ...

इन्हे अध्यापको की आन्दोलन की पीड़ा और उम्मीदो का जरा भी आभास नही रहा। हम जिस वक्त एक साथ जेल में गए उस वक्त का सच तो यह है कि इन्हे पता ही नही था कि वहा पर गिरफ्तार किया जाएगा वर्ना यह कभी साथ नही आते। इनमें कभी आजाद वाला जोश नही रहा। ये सदैव हाथ जोड़ने वाले निकले। डरने वाले कदम इनके साहसियों में भी भ्रम पैदा करते रहे। इनके लिए ही शायर ने कहा होगा —
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

आजाद अध्यापक संघ ने कई बार बैठक की लेकिन यह नही आए और जहां पर ये आए केवल और केवल विवादित करते रहे। समाचार पत्रो , सोशल मिडिया पर ये केवल आजाद विरोधी बात करते रहे। भरत पटेल को गददार करार देने के लिए और कांग्रेसी साबित करने के लिए इन्होने जो ताकत झोंकी वह यघपि आपके विश्वास के आगे बौनी साबित हो गए किन्तु यह प्रयास यदि एकता के लिए किये जाते तो आज हम कुछ हासिल कर चुके होते।

हमने सरकार के सामने केवल आन्दोलन का मार्ग चुना क्योंकि हम यह बेहतर तरीके से जानते है कि बिना मांगे तो मॉ भी बच्चे को दूध नही पिलाती है। इस सरकार के आश्वासनो के पहाड़ के नीचे अध्यापकों की लाशो के मजार बने पड़े है। यह भूल कर ये लोग जो करते रहे वह सदैव आन्दोलन के लिए घातक रहा ।
हमने सदैव इनसे कहा कि —
जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो
बहरो का ईलाका है जरा जौर से बोलों ।

अब मै आता हूॅ मुख्यमंत्री जी से वार्ता के उस दृष्य पर जहां पर प्रदेश की नजरे टिकी थी —
वार्ता के लिए कुछ नाम पहले से तय हो चुके थे पर भरत पटेल के सामने सीएम हाउस के सामने सैकड़ो अध्यापको का जमघट था। वे चाहते थे कि यदि अधिक से अधिक लोगो को अन्दर जाने का मौका मिले तो उन्हे भी मुख्यमंत्री से संवाद करने का मौका मिलेगा जैसा कि पहले डीपीआई की बैठको में किया गया था।

जैसे ही कुछ लोग अन्दर हुए कुछ लोगो ने आपत्ती ली कि आजाद वाले अन्दर जा रहे हैं। बाहर की नौटंकी देखकर अजीतपाल यादव ने अपने को अन्दर जाने से रोक दिया। उनका साफ कहना था कि बाहर ये हाल है तो अन्दर तुम क्या बात करोगे ?

उसके बाद मुख्यमंत्री जी ने अपने पुराने स्टाईल में कहा कि मैने बहुत दिया है और मै ही दूंगा पर आन्दोलन का रास्ता गलत है। बोलो क्यों किया ये वादा निभाओ रैली का आयोजन ? जम्बुरी में फटाखे फोड़ोगे ? तभी मोर्चा के सहयोगी घटको ने एक स्वर में कहा कि बड़े भैया यह आन्दोलन हम नही आजाद संघ कर रहा है।
नोट — 1 जब यह आन्दोलन आजाद संघ कर रहा है तो मोर्चा किस हैसियत से वार्ता में शामिल था ।

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि मनोहर तुमने भी किश्तो पर सहमति दी थी फिर भी मुझ पर भरोसा नही ?
नोट — 2 यह साफ हो गया कि जब छटवा वेतन एक मुश्त दिया जा रहा था तो किश्तो पर इन्ही लोगो ने सहमति दी थी ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षाविभाग अभी नही दे सकता आर्थिक मांगो के लिए एक बार और बैठकर तय कर लेंगे।
नोट — 3 जब अध्यापकों को शिक्षाविभाग मुख्यमंत्री इस समय नही देना चाहते तो आखिर किस कारण से यह आजाद अध्यापक संघ को आन्दोलन नही करने एवं सीएम के सामने सरकार विरोधी संघ घोषित करने के प्रयास करते है।

मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री शिवकुमार चौबे जीे के सामने इनका यह कहना कि आजाद वाले जावेद खान को क्यों नही समझाते ? वह हर वक्त आन्दोलन की बात कर बात बिगाड़ता है।
नोट — जावेद खान का नाम सीधे तौर पर मुख्यमंत्री जी के सलाहकार के सामने प्रस्तुत करने का आशय यह है कि ये सब लोग भाजपाई है और आजाद कांग्रेसी मानसिकता के है।

जिन कतिपय लोगो ने निरंतर संयुक्त मोर्चा के टूटने का शोक मनाया जा रहा है वे कल तक अपनी हर पोस्ट में कह रहे थे कि मोर्चा का गठन हुआ ही नही है।
नोट — यह खुद अपने विजन क्लीयर नही कर पा रहे है कि आखिर सच क्या है ? मकसद साफ है कि कुछ भी करो हमें टांग खिचना है ।

जब आजाद अध्यापक संघ ने जनादेश की कदर करते हुए तय किया कि जम्बुरी में हम पहूॅच कर वादा निभाओं के माध्यम से सरकार को आमंत्रित करेंगे।
नोट — मोर्चा ने इसका भी विरोध इसलिये किया कि जम्बुरी मैदान का एक दिवस का किराया 98000 रूपये था जिसका भार इन पर न पड़े इसलिये मैदान छोड़ दो।

हमने इनसे तब भी कहा कि —
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो

इसके बाद आजाद अध्यापक संघ की प्रांत प्रमुख श्रीमति शिल्पी शिवान को मुख्यमंत्री महोदय ने यह कहा कि शिल्पि मै तुम्हारे काल का जवाब नही दे पाया था पर मैने खुद तुम्हे काल किया और मिलने का कहा कि नही —
तब शिल्पी जी के और भरत जी के शब्द थे कि आपसे हम नाराज है। आपने हमारा बहुत दिल दुखाया है। आपको अध्यापकों को उनका हक देना चाहिए तब शिवराज जी ने कहा कि आप मुझसे नाराज क्यों हो नाराज तो मै हूॅ आपके आन्दोलन करने से।

तब भी आजाद की और से यही कहा गया कि आप हमारे बड़े भाई जैसे हो इसलिये हमारा हक बनता है नाराज होने का और आपको अध्यापकों को शिक्षाविभाग तो देना ही होगा।
तब मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आचार संहिता के बाद एक बार और बैठकर मामले सुलझाएंगे।

मुख्यमंत्री जी से कहा गया कि आप सम्मेलन करवा कर घोषणा कर दीजिए—
नोट — इस स्तर पर आने के बाद सम्मेलन और सम्मेलन में केवल घोषणा पर इनका ध्यान केन्द्रित क्यों है ? क्या कारण है कि ये आदेश जारी करने की बात नही कर सके।

आचार संहित के कारण हम आपकी मजबुरी भी समझते है यह कहा गया —
नोट — तो यह क्यों नही कहा गया कि आचार संहिता का क्षेत्र विशेष में प्रभाव है प्रदेश समग्र से इसका क्या लेना देना। और यदि है भी तो किसानो के लिए आचार संहिता के बावजूद हर कदम पर कदमताल की गई।

मित्रों यह केवल एक वर्णन है उन बातो का जो आपको पता नही होती है। अब आप सच्चाई सुनो।

आजाद अध्यापक संघ जानता है घुटने टेक देने का मतलब है गुलामी को स्वीकार लेना। आज के हालात में कोई संघ नही चाहता कि आन्दोलन हो क्योंकि पिछले समझौते में यह शामिल रहे है। अब आप इस बात को समझ लो कि अध्यापक यदि जमीनी स्तर भी इनके चुंगुल से बाहर आ जाओ। ये किसी भी हालत में अध्यापकों की डुबती नैया पार नही लगा सकते बल्कि हमारे अनुभव तो यह कहते है कि यह उसमें कुछ छेद और कर देंगे। आजाद अध्यापक संघ की और से मै आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूूॅ कि सभी को एक करने के चक्कर में हमने अपना और अध्यापको के आन्दोलन काल काल का बेहतरीन दौर गवॉया है।

लेकिन यह बात आपको पूर्ण विश्वास से कह रहे है कि हम आजाद अध्यापक संघ खुद के दम पर जिस तरह से यह लड़ाई को प्रारम्भ किया है उसी सम्मान के साथ सुखद अंत भी करेंगे।
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो

साथियों हम उस केकड़ा जाल में फस गए थे जहा पर एक को सम्भालो तो दूसरा भाग जाता है। अब हम स्वतंत्र है अपने फैसले लेने के लिए। कुछ लोगो को यह लगता है कि मुख्यमंत्री जी मोर्चा को ही समय देकर मिलेंगे या सम्मेलन करेंगे तो हम उन्हे स्वतंत्र करते है कि वे स्वयं मोर्चा हैं, करे वो जो करना है अब आजाद अध्यापक संघ अध्यापको के हक को खैरात नही बनने देगा।

मुख्यमंत्री जी को दुबारा यह सुझाव दिया गया है कि छटवे वेतन की किश्तो को एक साथ ना दो तो आप एक और किश्त इनको दे सकते हो ये खुश हो जाएंगे। मित्रो एसे सुझाव देने वाले क्या आपके लिए लड़ेंगे। यह तो हमारे विश्वास को भी आपकी नजरो में खण्डित कर देंगे। हमे परवाह नही है कि हमारे साथ सरकार का क्या सुलूक होगा —पर हम यह खुलकर कहते है कि —
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
और अब अंत में ......

जिन्हे राजनीति करना है वह खुब करें क्योंकि हमें तो अपने आन्दोलन की भेट चढ़े 11 अध्यापको के परिवारो के बच्चो को भी जवाब देना है। सच तो यह है कि इनके बढ़ते दखल के कारण मुख्यमंत्री महोदय ने भी अंदाजा लगा लिया था कि अब अध्यापको का तो भगवान भी भला नही कर सकता शायद इसलिये उन्होने कह दिया कि शिक्षाविभाग तो मै इस समय नही दे पाउंगा।

..... पर अब महोदय को भी समझने का हम अवसर दे रहे है कि विभाग तो हम हर हाल में लेंगे चाहे इसके लिए हम कुछ भी कुर्बानी देना पड़े।
अब आजाद अध्यापक संघ अपने स्वतंत्र प्रयास निर्णायक स्थिती तक जारी रखेगा। जिन्हे सम्मेलन करना हो वे सम्मेलन करे। हम अब समय के साथ ससम्मान संविलियन चाहते है।

जैसा कि जावेद ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा। 
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