इंदौर। पचास से ज्यादा बच्चों ने गोपनीय रूप से एक जागरूकता कार्यक्रम में अपने साथ हो रहे यौन शोषण को जाहिर किया। महिला सशक्तीकरण विभाग और पहल 'इनिशिएटिव फॉर सोशल चेंज' की ओर से इंदौर के शासकीय उत्कृष्ट स्कूल बाल विनय मंदिर में बच्चों के लैंगिक शोषण के प्रति बाल पंचायत आयोजित की गई। इसमें नौवीं से बारहवीं के विद्यार्थी शामिल हुए थे।
नाम-पूजा, कक्षा-12वीं। हर कोई बोलता है, जागरूक हो जाओ, अपनी सुरक्षा खुद करो। मेरी सहेली के साथ कोचिंग से घर लौटते समय ऐसा कुछ हुआ कि वह किसी को नहीं बताया जा सकता। न पुलिस आई, न मददगार। उसकी जिंदगी से जो खिलवाड़ होना था, वह हो गया। उसकी भरपाई कौन करेगा?
नाम-मेघा, कक्षा-12वीं। स्कूल और कोचिंग आने-जाने के समय बस में बैठते हैं तो ड्राइवर, कंडक्टर गंदी नजर से देखते हैं। भीड़ में कोई भी छूने का मौका नहीं छोड़ता। अकेले पाकर लोग इतने गंदे कमेंट्स करते हैं कि हमें यहां लिखने में भी शर्म आती है। ऐसा माहौल है तो कैसे लोगों को जागरूक करेंगे?
नाम-अमित, कक्षा-दसवीं। आपको यह पढ़कर आश्चर्य होगा, लेकिन यह भी एक सच्चाई है। कनाड़िया रोड पर एक आटा चक्की है, जब बच्चे गेहूं पिसवाने जाते हैं, तो वहां गंदी हरकत की जाती है। मैं भी शोषण का शिकार हो चुका हूं। किसी को बताने पर मारने की धमकी दी जाती है।
नाम-सौरभ, कक्षा-ग्यारहवीं। अगर कोई शिक्षक लोगों की नजर में बहुत अच्छे हों, लेकिन वे बच्चों का यौन शोषण करते हों तो ऐसे में क्या करें। ऐसा हमारे व कुछ दोस्तों के साथ हो चुका है, लेकिन उनके प्रभाव के कारण कोई कुछ नहीं बोल पाता। ऐसे में क्या करें?
बच्चों ने चिट्ठी में लिखा कि घर से लेकर स्कूल तक हर जगह हमारा यौन शोषण होता है। पचास से ज्यादा बच्चों ने गोपनीय चिट्ठियां लिखीं और समाज की गंदी हकीकत उजागर की। लड़कियों ने स्कूल व कोचिंग क्लास आते-जाते समय लड़कों द्वारा, बस ड्राइवर-कंडक्टर, साथी छात्रों द्वारा छेड़ने व अश्लील फब्तियां कसने की बातें लिखीं, वहीं लड़कों ने भी अपना दर्द बयान किया। लड़कों ने उनके साथ अलग अलग लोगों द्वारा यौन शोषण करने की बात लिखी। बच्चों को बाल संरक्षण अधिकारी भगवानदास साहू, चाइल्ड लाइन समन्वयक ब्रजेश धाकड़ ने जागरूक किया।
बच्चों ने यह भी सुझाव दिए
छात्र-छात्राओं के स्कूल से छूटने के समय में पांच-दस मिनट का अंतराल रखना चाहिए, ताकि भीड़ में हरकत न हो।
मूक-बधिर व दृष्टिबाधित बच्चों के लिए विशेष प्रोग्राम डिजाइन होना चाहिए। इसमें वे अपनी परेशानी बता सकें।
हर स्कूल में शिकायत-पेटी होनी चाहिए जो कि प्रिंसिपल के कमरे से दूर हो।
बच्चों को स्कूल में भी मोबाइल लाने की अनुमति मिलना चाहिए, ताकि परेशानी में फोन लगा सकें।
हर स्कूल में लड़कियों को डिफेंस ट्रेनिंग दी जाए, जिससे वह विपरीत हालात से निपट सकें।
गंभीर शिकायतों की जांच होगी
कुछ बच्चों ने नामजद गंभीर शिकायतें की हैं। ऐसे मामलों की जांच की जाएगी। इस तरह की बाल पंचायत प्रशासन के साथ मिलकर ज्यादा से ज्यादा स्कूलों में की जाएगी, ताकि बच्चे जागरूक हों और उनकी परेशानी भी सामने आ सके।
दीपेश चौकसे, निदेशक, पहल