शरद पाटीदार। हम 21 वीं सदी की ओर अग्रसर है किन्तु हमारी सोच 19 वीं सदी की ओर जा रही है। शासन चाहे कितने ही जतन करले किन्तु हमारी मानसिकता के आगे सारे बौने साबित हो रहे है। पंचायतीराज के तहत महिलाओ की भागीदारी बढ़ाने के लिए शासन ने 50 प्रतिशत पद स्थानीय संस्थाओं में आरक्षित किये किन्तु पुरुष प्रधान देश में सारे काम जो चुनी हुई महिला जनप्रतिनिधि है उनके या तो पति करते है या पुत्र करते है। बात काम तक ही सिमित नहीं है, हद तो तब होती है जब सरपंच पति को सरपंच साहब कहा जाता है। आरक्षण के पीछे शासन की मंशा महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाना था। किन्तु पति या पुत्र ऐसा नहीं होने देना चाहते। जब यह बात शासन तक पहुंची तो आदेश जारी हुआ की बैठक में किसी भी जनप्रतिनिधि का प्रतिनिधि नहीं बैठेगा, चुने हुए जनप्रतिनिधि को ही बैठक में उपस्थित होना होगा। जब इस नियम पर सख्ती दिखाई गई तो बैठक में महिला जनप्रतिनिधि की उपस्थिति नगण्य होने लगी। सामाजिक कार्यक्रमो में भी महिला जनप्रतिनिधि को नहीं भेजा जाता। जब तक पुरुष वर्ग आत्ममंथन नहीं करे तब तक शासन के कितने ही प्रयास हो सफल नहीं हो सकते है। अब हमें स्वयं अपनी सोच बदलना होगी ,21 वीं सदी नारी सदी होगी ।
लेखक परिचय:
श्री शरद पाटीदार (बखतगढ़)
12 वीं विज्ञानं संकाय
शा.न.चौ.उ.मा.वीं.बदनावर ( धार )
