नईदिल्ली। बिहार में भाजपा महागठबंधन से नहीं हारी बल्कि अपने ही नाराज कार्यकर्ताओं से हारी है। बिहार में भाजपा की हार और महागठबंधन की जीत के बीच बड़ी भूमिका निभाई है प्रशांत किशोर ने, जिन्होंने मोदी के लिए ब्रांडिंग की थी, लेकिन अमित शाह से अनबन के चलते इस बार उन्होंने नीतिश कुमार के लिए ब्रांडिंग की।
आइए जानें नीतीश कुमार को जीत का सेहरा पहनाने के लिए प्रशांत किशोर कौन-कौन सी स्ट्रैटजी बनाई थी:
पोस्टरों का रंग बदला
प्रशांत मानते हैं कि केसरिया रंग भाजपा के प्रचार अभियान को इम्पैक्टफुल बनाता है। उनका मानना था कि चटक रंग पर आई कांटेक्ट अच्छा होता है। इसी बात को ध्यान में रखकर प्रशांत ने चुनाव के बैनरों-पोस्टरों से लेकर टीवी अखबार और वेबसाइटों पर दिए गए विज्ञापनों में राजद-जदयू के पारंपरिक रंग 'गहरा हरा' को छोड़कर चटक रंगों का इस्तेमाल किया। वेबसाइटों पर नीतीश के विज्ञापन में लाल और पीले रंगों का प्रयोग किया गया। फेसबुक और ट्विटर पर लगाई जाने वाली तस्वीरों में भी लाल और पीले रंगों का इस्तेमाल किया गया।
नीतीश के लिए गढ़े नारे
लोकसभा चुनाव में प्रशांत ने नारा दिया था, 'हर-हर मोदी घर-घर मोदी.' यह नारा लोगों की जुबान पर चढ़ गया था। इसी तर्ज पर प्रशांत की टीम ने नीतीश के लिए भी कई नारे गढ़े. जैसे- हां भैया बिहार में बहार हो फिर नीतीशे कुमार हो, झांसे में न आएंगे नीतीश को जिताएंगे, बनता बिहार-बढ़ता बिहार नीतीश-लालू फिर एक बार, आगे बढ़ता रहे बिहार फिर एक बार नीतीश कुमार, अपराधमुक्त रहे बिहार फिर नीतीश कुमार, नीतीश का निश्चय विकास की गारंटी आदि नारे प्रचारित किए।
मोदी की रैली के तुरंत बाद नीतीश की प्रेस कांफ्रेंस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी बिहार में रैली करते वह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगते। इसे कुंद करने के लिए प्रशांत किशोर की स्ट्रैटजी के तहत नीतीश तुरंत प्रेस कांफ्रेंस बुलाते और मोदी की कही गई बातों का जवाब देते, जिससे उन्हें भी मोदी के बहाने ही सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने का मौका मिल जाता।
नीतीश का भाषण गुड गर्वनेंस के इर्द-गिर्द रहती
लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभी रैलियों के भाषण में विकास के मुद्दे को केंद्र में रखकर बोलते, जिसका उन्हें काफी फायदा हुआ था। ठीक इसी बात को ध्यान में रखकर प्रशांत ने नीतीश के भाषणों के केंद्र में गुड गर्वनेंस, सुशासन, विकास आदि को केंद्र में रखते।
नीतीश को बनाया आम लोगों का नेता
जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के बाद भाजपा ने उन्हें दलित विरोधी साबित करने की कोशिश में जुटी रही। इसे कुंद करने के लिए प्रशांत ने नीतीश की छवि को आम लोगों के नेता के रूप में प्रचारित किया। इस स्ट्रैटजी से नीतीश की मोदी से हारने वाली छवि भी पीछे छूट गई।
सफल रहा 'घर-घर दस्तक' अभियान
प्रशांत ने 'घर घर दस्तक' अभियान के साथ नीतीश के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के तहत जदयू के कार्यकर्ताओं को एक करोड़ घरों तक पहुंचना था और उस घर के लोगों को नीतीश राज में हुए कामों, पार्टी के वादों और विचारों से अवगत कराना था।
इसे सफल बनाने के लिए ज्यादा घरों तक पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं को सम्मानित भी किया गया। लक्ष्य था कि एक करोड़ घरों में जाने से चार करोड़ लोगों तक पार्टी की बात को पहुंचाया जा सकेगा। इस अभियान से यह भी पता चला गया कि लोकसभा चुनाव में किन वजहों से जनता ने नीतीश को नकारा।
वोटरों के इसी फिडबैक के बाद कांट्रैक्ट शिक्षकों को स्थाई नौकरी दी गई। नीतीश बार-बार किसानों की बात करने लगे और आगे से कभी भी कांट्रैक्ट नौकरी नहीं देने का वाद किया।
प्रत्याशियों को प्रचार करने को कहा
प्रशांत के इशारे पर ही महागठबंधन ने टीवी और अखबारों में विज्ञापन पर पैसे खर्च नहीं किए। तर्क था कि महागठबंधन के नेताओं के पास पैसों की कमी है, इसलिए विज्ञापनों पर खर्च नहीं किए जाएं।इसकी भरपाई प्रत्याशी खुद और अपने समर्थकों के सहारे ज्यादा से ज्यादा कैंपेन करें। इसी स्ट्रैटजी के तहत खुद नीतीश और लालू एक दिन में आठ से नौ रैलियां करते थे।
असंतुष्ट वोटरों के घर नीतीश ने भेजा पत्र
'घर-घर दस्तक' अभियान और मिस्ड कॉल कर शिकायत करने वाले कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए उनके घरों पर नीतीश कुमार के पत्र भेजे गए। साथ ही कॉल करने वालों के घर नीतीश की आवाज में कॉल कर उनकी समस्या दूर करने का आश्वासन दिया गया।
जानबूझकर नीतीश-लालू अलग-अलग रैलियों में जाते
प्रशांत का मानना था कि लालू और नीतीश को सुनने वाले अलग-अलग श्रोता हैं। इसलिए दोनों नेताओं को अलग-अलग रैलियां करने की सलाह दी गई। नीतीश जहां अपने भाषणों में विकास की बात करते दिखते, वहीं लालू सामाजिक न्याय और जातिगत ध्रुवीकरण पर जोर देते।