अपने अहम और वहम से हारी है भाजपा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। और पिछले कई वर्षो से बिहार की राजनीति में किनारे हुए लालू प्रसाद अब बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं। एक बार फिर बिहारी राजनीति के नायक. पिछले चुनाव में हाशिये पर गया हुआ उनका दल आज बिहार विधान सभा में सबसे बड़ा दल हो गया है। यह जीत लालू और नीतीश की जोड़ी की जीत है, लेकिन असली जीत लालू की है, क्योंकि नीतीश हाशिये पर नहीं थे, उन्होंने अपना मुख्यमंत्रित्व बरकरार रखा है।

भाजपा कहां गच्चा खा गई? क्या उसने जो पूरे देश की अपनी अक्षौहिणी सेना जुटा ली थी, वह उसके लिए भारी पड़ा या गोमांस और आरक्षण का मुद्दा-जो बीच चुनाव में उभरा और नौबत यहां तक आई कि तीसरे चरण के पहले अपने चुनावी भाषणों में बार-बार प्रधानमंत्री मोदी को अपनी जाति की दुहाई देनी पड़ी। नतीजे बता रहे हैं कि बिहार की जनता अब कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। पटना के सभी बड़े होटलों को भाजपा ने जिस तरह अपने कब्जे में लिया था, और पूरे देश के भाजपाई जिस अंदाज में जुटे थे,  उसे ही देखकर संभवत: नीतीश कुमार ने बिहारी बनाम बाहरी का व्यंग्य किया था. जनता ने इसे गम्भीरता से लिया।

भाजपा से सबसे बड़ी चूक हुई कि सामाजिक न्याय के ध्रुवीकरण को वह नहीं समझ पाई। लालू और नीतीश इकट्ठे कितनी बड़ी ताकत हो सकते हैं, इसका आकलन भाजपा ने नहीं किया। लालू-नीतीश ने फूंक-फूंक कर कदम रखे। समय पर सीटों का बंटबारा किया। उन्हें मुलायम सिंह यादव की लताड़ भी खानी पड़ी। जल्द ही संभल कर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की। तीनों दलों; राजद, जदयू और कांग्रेस के नेताओं की उपस्थिति में नीतीश कुमार ने सभी उम्मीदवारों की घोषणा की। इससे एकजुटता का प्रदर्शन हुआ। फिर अपनी आदत के विपरीत जाकर सभी उम्मीदवारों का जाति-वर्गवार संख्या भी घोषित की। कुल 243 में 134 सदस्य पिछड़े वर्गों से, कुल 33 ऊंची जातियों से. ऊंची जातियों के लिए कमीशन बनाकर पिछड़े वर्गों में बदनाम हुए नीतीश कुमार ने हिसाब दुरुस्त कर लिया। 

इसके जवाब में भाजपा ने सौ से अधिक द्विज-वैश्य उम्मीदवारों को उतारा था। 86 केवल ऊंची जातियों से। आलम यह था कि त्रिवेणी संघ के उद्भव क्षेत्र भोजपुर-बक्सर की कुल 11 में से 10 सीटों पर भाजपा लड़ी। दो सीटें आरक्षित थीं। शेष 8 सीटों पर सभी के सभी उम्मीदवार ऊंची जातियों से थे. इसी क्षेत्र में पहली बार नरेन्द्र मोदी ने अपनी जाति का उल्लेख करते हुए अपने को अति पिछड़ा बतलाया. दलित पिछड़ों ने उनकी नहीं सुनी तो क्या आश्चर्य! खबर है कि इस क्षेत्र से भाजपा के लगभग सभी उम्मीदवार हार गए। वैसे इस पूरी लड़ाई में भाजपा को अहम और वहम ने हराया है दिल्ली की तरह। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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