नईदिल्ली। हाईकमान और बिहारी बाबू के बीच तनातनी अब छिपी नहीं है। बाबू को मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया, उन्होंने कुछ नहीं कहा परंतु बाबू को बिहार में महत्व नहीं मिला तो वो तिलमिला गए। उन्होंने खुलकर हाईकमान के प्रति नाराजगी व्यक्त की और 'अहम व वहम' वाले नेताओं को जमीनी हकीकत से रुबरू भी करवाया।
उन दिनों जब सारी भाजपा बिहार में जीत के प्रति आश्वस्त थी, शत्रुघ्न सिन्हा ने बता दिया था कि बिहार में भाजपा की हालत पतली है लेकिन उनके बयानों को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। इस तरह के बयानों के लिए कुछ भक्त किस्म के लोग सिन्हा को तत्काल भाजपा से बाहर निकालना चाहते थे, हाईकमान ने ऐसा तो नहीं किया परंतु जो किया वो कुछ इसी तरह का था। पहली बार बिहार में चुनाव हुए और शत्रुघ्न सिन्हा को एक आमसभा भी नहीं मिली। वो भाजपा में तो थे लेकिन फोर्सलीव पर।
इस दौरान उन्होंने कई बार चेतावनियां जारी कीं। बताया कि चूक हो रही है, सुधारिए परंतु हाईकमान कहां मानने वाला था। बिहार हारे तो सिन्हा ने फिर अपने तल्ख लहरे में प्रतिक्रिया जारी की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि 'जब जीत की ताली कप्तान को मिलती है तो हार की गाली भी कप्तान की होगी।' अब सवाल यह उठता है कि भाजपा इनका क्या करेगी। क्या अपनी गलती मानते हुए शत्रुघ्न सिन्हा को वो सबकुछ देगी जो वो डिजर्व करते हैं या खिसियाते हुए बाहर का रास्ता दिखा देगी।
देखते हैं दिल्ली क्या तय करती है।