भारत: जर्जर अर्थ व्यवस्था और जलवायु परिवर्तन

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह साल अर्थात 2015 इतिहास का सबसे गरम साल होने का कीर्तिमान बनने जा रहा है। इस साल न सिर्फ धरती और वायुमंडल का, बल्कि समुद्र का तापमान भी सबसे ज्यादा बढ़ा है। यह साल सबसे ज्यादा तापमान के मामले में भी आगे रहा है और औसत तापमान के मामले में भी। 1993 से लगातार उपग्रह के जरिये समुद्र के जल स्तर का अध्ययन हो रहा है, समुद्र का जल स्तर इस साल जितना है, उतना इस पूरे दौर में कभी नहीं रहा, जो बताता है कि बढ़ती गरमी के कारण ध्रुवीय इलाकों व अन्य ठंडे क्षेत्रों के हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं। जरूर सच मायने में २०१५ अल नीनो का साल था, इसलिए भी इस साल तापमान कुछ ज्यादा बढ़ा। लेकिन धरती लगातार गरम होती जा रही है, यह इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि पिछले पांच साल का औसत तापमान उसके पिछले पांच साल के औसत तापमान से ज्यादा रहा है। २०१५ का बढ़ा तापमान किसी अपवाद वर्ष का मौसम नहींहै , बल्कि यह तापमान बढ़ने के धरती के रुझान का ही हिस्सा महसूस होता  है। तापमान के साथ साल २०१५ प्रदूषण के आंकड़े भी तकरीबन यही कहानी कह रहे हैं। इस साल में कार्बन उत्सर्जन भी रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा है।

पेरिस में जलवायु परिवर्तन को रोकने की रणनीति पर कोई आम सहमति बन सकेगी? वहां जो समझौता होगा, वह सभी देशों के लिए बाध्यकारी भी होगा, यानी कार्बन उत्सर्जन में कमी का यहां जो वे वादा करेंगे, उसे उन्हें निश्चित समय के भीतर पूरा भी करना होगा। इस समझौते के पीछे सोच यह है कि धरती को गरम करने वाली ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इतना कम कर दिया जाए कि तापमान दो डिग्री तक नीचे आ जाए। यह लक्ष्य बनाना जितना आसान है, उसे हासिल करना उतना ही कठिन है।  उससे पहले यह तय करना जरूरी है  कि किसी देश के ग्रीन हाउस उत्सर्जन को उस देश के कुल आंकड़े के हिसाब से देखा जाए या फिर प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से। इस मुद्दे पर विकसित और विकासशील देश कभी पूरी तरह सहमत नहीं हुए।

समुद्र का जल स्तर बढ़ता है, तो कई जगहों से जनसंख्या का पलायन होगा और दूसरी जगहों पर इसके दबाव भी बढ़ेंगे। इस बीच मौसम चक्र के बदलने के संकेत भी आने लगे हैं। मौसम चक्र अगर बदलता है, तो खाद्यान्न सुरक्षा पर भी संकट मंडरा सकता है। भारत जैसे देशों के लिए यह चुनौती बहुत बड़ी है, क्योंकि उन्हें बहुत बड़ी आबादी का पेट भरना है। इसके लिए किसानों को फसलों के विकल्प देने से लेकर कई तरह की तैयारियां हमें पहले से करनी होंगी। साथ ही अर्थव्यवस्था के कुल जमा विकास को भी काफी तेजी से बढ़ाना होगा, क्योंकि अगर पर्यावरण बदलता है, तो एक विकसित अर्थव्यवस्था ही उसकी चुनौतियों का मुकाबला अच्छी तरह कर पाएगी। जर्जर अर्थव्यवस्थाओं के लिए जलवायु परिवर्तन ज्यादा बड़ी मुसीबत लेकर आएगा।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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