नई दिल्ली। दिल्ली से सटे दादरी के बिसाहड़ा गांव में गौमांस खाने की अफवाह के चलते भीड़ के हाथों मारे गए 50 साल के अखलाक की हत्या के विरोध में पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अपने मुखपत्र में निशाना साधा है। इतना ही नहीं, पांचजन्य के नए अंक की कवर स्टोरी में कहा गया है कि वेदों में गाय को मारने वाले 'पापियों' की हत्या का आदेश दिया गया है।
बुरी नसीहतों से प्रभावित होकर अखलाक ने भी गाय को मारा
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, 'इस उत्पात के उस पार' शीर्षक वाले इस लेख में आरोप लगाया गया है कि मुस्लिम नेता भारतीय मुसलमानों को देश की परंपरा से नफरत करना सिखाते हैं। तुफैल चतुर्वेदी (विनय कृष्ण चतुर्वेदी) ने यह लिखा है, जिसमें वह कहते हैं कि शायद इन्हीं बुरी नसीहतों से प्रभावित होकर अखलाक ने भी गाय को मारा होगा।
हिंदुओं के लिए गाय बेहद अहम
लेख में कहा गया है, 'वेद का आदेश है कि गोहत्या करने वाले के प्राण ले लो। हममें से बहुत लोगों के लिए तो यह जीवन-मरण का प्रश्न है।' इसमें कहा गया है, 'गोहत्या हमारे लिए इतनी बड़ी बात है कि सैकड़ों साल से हमारे पूर्वज इसे रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा कर हत्या करने वालों से टकराते रहे हैं। इतिहास में सैकड़ों बार ऐसे मौके आए हैं, जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए उनके मुंह में बीफ ठूंसा है।' लेख में हिंदुओं के लिए गाय की अहमियत पर कहा गया है कि सन 1857 में पहली क्रांति उस वक्त हुई, जब अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को गोमांस की चर्बी वाली कारतूसों को दांत से काटने के लिए कहा था।
लेख पर RSS की सफाई
इस लेख पर जब पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा, 'हम किसी भी हिंसक घटना का समर्थन नहीं करते। मुझे याद नहीं कि हिंसा का समर्थन करता ऐसा कोई लेख छपा है। जांच चल रही है।'
वहीं इस लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए संघ के विचारक राकेश सिन्हा ने कहा कि पाञ्चजन्य में छपी एक लेखक की दिग्भर्मित राय को संघ की राय बताना गलत है। उन्होंने कहा कि आरएसएस दादरी घटना की पूरी तरह निंदा करती है और इसकी किसी भी तरह से समर्थन नहीं करती है।