ई-रजिस्ट्री के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका

इंदौर। ई-रजिस्ट्री को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है। इसमें कहा है कि रजिस्ट्री नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। कानूनन किसी व्यक्ति को ई-संपदा के माध्यम से रजिस्ट्री कराने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। सोमवार को इस पर सुनवाई होगी।

याचिकाकर्ता एडवोकेट संजय पवार की ओर से एडवोकेट अभिनव धनोतकर ने याचिका पेश की। याचिका में कहा है कि ई-संपदा एप्लीकेशन के माध्यम से रजिस्ट्री कराने में कई व्यवहारिक दिक्कतें आ रही हैं। शासन ई-रजिस्ट्री के लिए नागरिकों को बाध्य कर रहा है। रजिस्ट्री कराना नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन जो तरीका अपनाया जा रहा है वह गलत है। 15 जून 2015 को जारी सर्क्यूलर में मैन्यूअल रजिस्ट्री को एच्छिक बताते हुए कहा है कि सरकार किसी भी दिन इसे बंद कर सकती है। याचिका में इस सर्क्यूलर को भी चुनौती दी गई है।

यह गुहार लगाई
याचिका में गुहार लगाई है कि ई-रजिस्ट्री के लिए अपनाए जा रही सॉफ्टवेयर प्रणाली को रद्द किया जाए।
दस्तावेज लेखकों को लायसेंस जारी किए जाए ताकि सही तरीके से रजिस्ट्री ड्रॉफ्ट हो सके।
सर्विस प्रोवाइडर की नियुक्ति स्टॉम्प एक्ट के तहत की गई है। इसमें सिर्फ राजस्व की वसूली की जा सकती है।

याचिका में उठा गए सवाल
सर्विस प्रोवाइडर के लायसेंस 8 वीं, 10 वीं पास व्यक्तियों को दिए गए हैं। रजिस्ट्री की ड्राफ्टिंग में कई कानूनी पेंच होते हैं। ऐसे में कानून विशेषज्ञ की उपस्थिति के बगैर प्रक्रिया पूरी कैसे हो सकती है?
एक व्यक्ति ने संपत्ति खरीदने के लिए भुगतान कर दिया। बेचवाल रजिस्ट्री के लिए पंजीयन कार्यालय में उपस्थित भी हुआ, लेकिन ई-रजिस्ट्री प्रक्रिया के चलते चार दिन बाद आने को कहा गया। इस बीच बेचवाल की मृत्यु हो गई। अब संपत्ति की रजिस्ट्री कैसे होगी?
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