विधायक ने रामलीला में निभाया किरदार

छतरपुर। रामायण में जनकपुर के राजा वैदेही जनक के वेष में रामलीला के मंचन पर बिजावर विधायक पुष्पेन्द्रनाथ पाठक, गुड्डन को देखकर दर्शक भावविभोर हो उठे। सीता के स्वयंवर का अभिनय करते हुए विधायक ने दर्शकों को मानव कल्याण सर्वस्व न्यौछावर कर देने की प्रेरणा दी। 

यह रामलीला का मंचन सुबह तक चला। रियल लाईफ में भले ही हमेशा ही विधायक और का ओहदा है,लेकिन श्री पाठक रामलीला शुरू होते ही हमेशा की भांति रामलीला की व्यवस्थाओं , पात्रों की साज-साज्जा में जुट जाते हैं। नौगांव में संचालित इस रामलीला का इतिहास 111 वर्ष पुराना है। ब्रिटिश शासनकाल के समय में शुरू की गई यह रामलीला विधायक जैसे कार्यकर्ताओं की दम पर आज भी पूरे प्रदेश में ख्याति फैला रही है। बुधवार की रात राजा जनक के चरित्र का अभिनय करने जैसे ही विधायक जनक बने विधायक ने धनुष यज्ञ के पश्चात सीता का मर्यादा पुरूषोत्तम राम के साथ स्वयंवर रचाया। यह रामलीला दशहरा तक चलेगी। दिन के समय विधायक के धर्म को निभाते हैं और राजनैतिक व्यस्ताओं के बावजूद रात को रामलीला के मंच पर पहुंचते हैं।

विधायक गुड्डन पाठक का कहना है कि राजा जनक को जनता की सेवा और उसके कल्याण के लिए अपने देश की भी फिक्र नहीं थी। वर्ष 2011 में जनक का पात्र कर रहे पुष्पेन्द्र नाय के अचानक बीमार होने पर पुष्पेन्द्रनाथ पाठक अपने आपकों रोक नहीं सके और वे खुद सिर पर मुुकुट और राजाओं की वेषभूषा पहनकर मंच पर उतर गए। राजा जनक सौम्य और सरल जनता के प्रति जवाबदेह थे। उनके चरित्र के अभिनय का जीवन में गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने जनता की सेवा का संकल्प लेकर सक्रिय राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिया। उनकी लोकप्रियता, सरलता और लोगों के प्रति सहयोग की भावना, अनुशासन को पार्टी ने आंका औ।र उन्हें बिजावर विधान सभा सीट से भाजपा की टिकिट देकर चुनावी समर में उतार दिया। जनक के चरित्र से प्रेरणा लेकर विधायक पाठक जनता जनार्दन के बीच पहुंचे महज 11 दिनों में वहां उन्होंने अपना परिचम फहरा दिया। भारी मतों से विधायक चुने जाने के बाद वे जनता के बीच गए। उन्हें रामराज की परिकल्पना बताई। उसी दिशा में उन्होंने अपनी कोशिश भी की। विधायक पाठक का कहना है कि रामलीला के मंच पर जनक के जीवन के जीवन चरित्र का मंचन करते से प्रभावी पेे्ररणा मिली। उनका कहना है कि राजा जनक अपने राज्य में केवल कल्याण तथा गरीबों के उत्थान और समानता के लिए काम करते थे। उन्हें कौन बुरा कह रहा है, कौन भला कर रहा है, विदेहराज जनक को कोई परवाह नहीं थी। सिर्फ और सिर्फ जनकल्याण के लिए अपने आपकों समर्पित करने वाला जनक का चरित्र था। जनक के पात्र बनने के बाद यह संस्कार मन और मस्तिष्क में बैठे विधायक पाठक जनता के बीच सतत पहुंचते हैं। उनसे जीवन संबंध बनाना उनके स्वभाव में आ गया है। भले ही ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें भलाबुरा कहा जाए, लेकिन वे जनता के बीच पहुंचने में किचकिचाते नहीं हैं। रामलीला के मंच पर राजा जनक का जो अभिनय देंखा गया ठीक वैसा ही आचरण और स्वभाव विधायक गुड्डन पाठक देखने को मिला है। गरीबों की बेटियों की शादी में गरीबी बाधक नहीं बनने देते वे दलबल के साथ शादी का कार्ड मिलते ही पहुंच जाते हैं और बेटी को बाबुल के घर विदा कर लौटते हैं। उनके इसी स्वभाव ने और इसी पात्र के अभिनय ने विधानसभा तक पहुंुचाया है।
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