इंदौर। कलेक्टर की नाक के नीचे वोटर आईडी घोटाला हुआ। उजागर हुआ और जांच भी हुई परंतु कार्रवाई किसी के खिलाफ नहीं हई। पूरे मामले में लीपापोती कर दी गई।
इस मामले में आई जांच रिपोर्ट, किसी आयोग की सिफारिश ज्यादा लग रही है। उसमें व्यवस्था को कैसे सुधारें, इस प्रश्न पर कई जवाब दिए गए हैं लेकिन ना तो किसी अफसर को दोषी माना गया और ना ही कार्रवाई हुई। जबकि उनके डिजिटल सिग्नेचरों से ही फर्जी वोटर आईडी कार्ड बने हैं। उधर पुलिस ने भी जिला निर्वाचन कार्यालय से कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क जब्त की थी। उसकी रिपोर्ट के भी पते नहीं हैं, जबकि उसे जांच के लिए भोपाल भेजा गया था।
कलेक्टोरेट में फर्जी वोटर आईडी कार्ड बनने की जानकारी तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी को मिली थी। उन्होंने क्राइम ब्रांच को इसकी जानकारी दी थी, इसके बाद छापा मारकर कार्ड बनाने वाली कंपनी के 12 से अधिक कर्मचारियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, लेकिन धीरे-धीरे जांच ठंडी पड़ गई और एजेंसी के खिलाफ भी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया, जबकि वोटर आईडी कार्ड के माध्यम से कोई भी देश की नागरिकता हासिल कर सकता है।