सूचना के अधिकार के 10 साल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा आयोजित 10वें वार्षिक सम्मेलन में गिने-चुने आरटीआई कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया, जबकि इसमें आरटीआई की दशा और दिशा पर चर्चा होनी थी। इन 10 सालों में सीआईसी को 2.12 लाख शिकायतें और अपीलें प्राप्त हुई जिनमें 1.62 लाख शिकायतों एवं अपीलों का ही निपटारा किया जा सका, जबकि इस अवधि में 50लाख से अधिक आवेदन विविध प्राधिकारों को प्राप्त हुए हैं। आश्चर्यजनक रूप से आरटीआई कानून के बनने के 10 सालों के बाद भी इसकी संकल्पना अपने प्रारंभिक चरण में है। राज्यों में हालत बदतर है। वहां सरकारी कर्मचारी सूचना देने को अपना काम नहीं मानते हैं। सूचना का अधिकार के अंतर्गत सूचना मांगने वाले आम आवेदकों को राज्यों में परेशान किया जाता है। अक्सर दोषी अधिकारियों को सजा नहीं दी जाती है। आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है, पर उसका अनुपालन नहीं होता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम ने पूरे देश में क्रांति लाने का काम किया है। इस कानून ने सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करते हुए लाखों-करोड़ों को न्याय दिलाने का काम किया  लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि हाल के वर्षो में आरटीआई कानून के दुरुपयोग में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। आज इस कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। लोकहित के नाम पर लोग निर्थक, बेमानी और निजी सूचनाओं की मांग कर रहे हैं, जिससे मानव संसाधन व सार्वजनिक धन का असमानुपातिक व्यय हो रहा है| इसके द्वारा निजता में दखलअंदाजी भी की जा रही है। इसके अलावा, अभी भी निजी क्षेत्र को इसकी जद में नहीं लाने के कारण इसकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं, पर इसके साथ यह भी सत्य है कि इस कानून की वजह से बहुत सारे घोटालों का पर्दाफाश हुआ है लेकिन ये सब ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए है। सरकार को इस कानून को अपडेट करना चाहिए और वे प्रावधान जोड़े जाना चाहिए जिससे यह जन साधारण का हथियार बने ब्लेकमेलिंग का औजार नहीं। 

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