राकेश दुबे@प्रतिदिन। नरेंद्र मोदी लौट आये हैं। भारतीय प्रधानमंत्री की सालों बाद यह यात्रा हुई। खाड़ी के देशों से भारत के सांस्कृतिक और कारोबारी संबंध हजारों साल पुराने हैं। एक दौर में दक्षिण भारत और अरब देशों के बीच व्यापारिक संबंध इतने मजबूत थे कि वह अरब देशों की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी था लेकिन ब्रिटिश, फ्रेंच व डच औपनिवेशिक युग के दौरान भारत के सामान यूरोप जाने लगे और यूरोप के सामान भारत आने लगे, इससे खाड़ी के देशों से रिश्ते में ठहराव आ गया।
वैसे, आजादी के बाद रिश्तों में निरंतर सुधार आता गया। भारत को सर्वाधिक तेल-आपूर्ति करने वालों में खाड़ी के देश हैं। लेकिन एक सच यह भी है कि 70 के दशक के बाद से अरब देशों का तेजी से इस्लामीकरण हुआ और वे भारत के मुकाबले खुद को पाकिस्तान के करीब पाने लगे। यही नहीं, इसी दौरान वहां के औद्योगिक जगत को लगने लगा कि भारतीय कामगार, कुली और मजदूर के रूप में ही उपयोगी हैं, क्योंकि ज्यादातर भारतीय इन्हीं कामों के लिए वहां जाते थे।
दूसरी तरफ, भारत के अंदर यह भावना पैदा हुई कि अगर हम वहां के कारोबारियों को भारतीय जमीन पर अवसर देते हैं, तो मुमकिन है कि भारत से इस क्षेत्र में भागे तस्कर और आपराधिक तत्व यहां के बाजार में अपनी पैठ जमा लें। इन शक-शुबहे के बीच वाणिज्य व निवेश के क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच संबंध बनता रहा, किंतु इसमें कोई बड़ी उपलब्धि नहीं आई। चूंकि हाल के दशकों में यह पूरा क्षेत्र भारत से भागे संदिग्ध तत्वों का जमावड़ा बन चुका था और उनका पाकिस्तान के साथ एक नापाक गठजोड़ कायम रहा, इसलिए राजनीतिक स्तर पर कोई पहल नहीं होती थी और हमारे राजनेता भी वहां के औपचारिक दौरे से कतराते थे। अब यह नई इबारत है , परिणाम प्रतीक्षित हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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