राकेश दुबे @ प्रतिदिन। अच्छे दिन अर्थात सुविधाजनक माहौल यदि किसी के लिए है तो नरेंद्र मोदी के लिए है। भारतीय जनता पार्टी में कोई चुनौती नहीं बची है और कांग्रेस का संगठन तार-तार हो चुका है, जिसकी वजह से वह एक के बाद दूसरे राज्य में हारती जा रही है। फिर राहुल गांधी, इंदिरा या राजीव की तरह आकर्षक नेता नहीं हैं। अब वोटर किसी राष्ट्रीय नेता से यह नहीं पूछते कि वह किसका बेटा या पोता है, बल्कि यह पूछते हैं कि उसने क्या किया है? सच में, भारतीय लोकतंत्र को एक विश्वसनीय विपक्ष की और उसके एक विश्वसनीय नेता की सबसे ज्यादा जरूरत है। नरेंद्र मोदी, इंदिरा गांधी के बाद देश के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री हैं। अपनी पार्टी और सरकार पर नियंत्रण के मामले में सिर्फ इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से ही उनकी बराबरी हो सकती है। लेकिन जहां नेहरू और इंदिरा को बड़े विपक्षी नेताओं का सामना करना पड़ा था, मोदी के सामने फिलहाल कोई ऐसा नेता नहीं है।
नेहरू को तो 1947 और 1950 के बीच अपनी ही पार्टी और सरकार में एक समानांतर सत्ता केंद्र का सामना करना पड़ा था। वल्लभभाई पटेल के सामने कांग्रेस अध्यक्ष या देश के राष्ट्रपति के चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर नेहरू को झुकना पड़ा था। जब सरदार पटेल की दिसंबर 1950 में मृत्यु हो गई, तो नेहरू के लिए पार्टी और सरकार में कोई चुनौती नहीं रही, लेकिन संसद में उनकी नीतियों का प्रभावशाली विरोध करने वाले कई नेता थे।
दक्षिणपंथी श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर वामपंथी हीरेन मुखर्जी और एके गोपलन तक। लेकिन उनके सबसे प्रभावशाली विरोधी पूर्व कांग्रेसी नेता थे। इनमें लोकलुभावन नीतियों वाले जेबी कृपलानी, समाजवादी राममनोहर लोहिया और स्वतंत्र पार्टी के नेता सी राजगोपालाचारी। नेहरू इन्हें बहुत गंभीरता से लेते थे, क्योंकि उनके राष्ट्रवादी रुझान नेहरू जितने ही विश्वसनीय थे।
अब स्थिति दूसरी है कांग्रेस और संसद या राज्यों में उसके जेसे का रुझान सिर्फ प्रधानमंत्री की कुर्सी तक है। वो भी जोड़ तोड़ कर। नरेंद्र मोदी जिन्हें न तो दल के भीतर चुनौती है और दल के बाहर आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ में बल नहीं है। फिर भी राहुल बजाज की टिप्पणी, मोदी चमक खोते जा रहे है, से सहमत हुआ जा सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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