सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने शुरू कर दी नई बहस

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक व्यक्ति को दिनदहाड़े गोली से उड़ाने वाले दोषी को नाबालिग मानकर उसे तत्काल बरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट के इस ताजा आदेश से यह बहस और तेज हो गई है कि क्या हत्या, डकैती और रेप जैसे संगीन अपराधों में नाबालिग को उचित सजा देने में देश के कानून कमजोर है।

वहीं इस मामले का दूसरा पहलू यह भी है कि रामनारायण को नाबालिग मानने में न्यायव्यवस्था को 40 साल लग गए जबकि घटना 1976 की है। वह पिछले 10 वर्ष से आगरा केंद्रीय कारागार में बंद है और अब 55 साल का हो गया है।

सरकार सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर केंद्र सरकार संगीन अपराधों जैसे हत्या, रेप और डकैती में शामिल किशोरों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 का लाभ न देने के मामले में विचार कर रही है। प्रस्तावित बिल में इन मामलों में शामिल किशोरों को बालिग मानेगी और उन्हें समान्य रूप से दी जाने वाली सजाएं मिलेंगी।

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और आरके अग्रवाल की पीठ ने यह फैसला शुक्रवार को यूपी के एक मामले में दिया। कोर्ट ने पाया कि वारदात करने के दिन किशोर 15 साल 11 माह और 26 दिन का था। लेकिन वह इस बारे में अपने स्कूल के प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं कर पाया था जिसके कारण सेशन कोर्ट ने उसे 18 वर्ष का बालिग मानकर हत्या करने पर धारा 302 के तहत उम्रकैद की सजा दी। सबूतों के अभाव में हाईकोर्ट ने भी  सजा को बरकरार रखा।

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया लेकिन ने अगस्त 2004 में उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उसने समीक्षा याचिका दायर की लेकिन कोर्ट ने उसे फिर से खारिज कर दिया। इसके कारण उसे आगरा कारागार में 10 वर्ष बिताने पड़े।

इसके बाद उसने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का फैसला कोर्ट में पेश किया जिसमें उसने 1976 में महज 15 साल 11 माह का माना गया था7 इस फैसले के साथ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि उसे तुरंत छोड़ दिया जाए क्योंकि जुनेवनाइल होने के कारण एक दिन भी जेल में नहीं रखा जा सकता। यदि इस अपराध में उसे सजा मिलती भी तो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत वह तीन वर्ष से ज्यादा नहीं होती और यह सजा भी किशोर सुधार गृह में काटनी होती न कि सामान्य जेल में।

किशोर न्याय
किशोर न्याय कानून, 2000 के तहत किशोर को संगीन अपराध में अधिकतम तीन वर्ष तक सुधार गृह में रखा जा सकता है।
किशोरों के संगीन अपराधों में बढ़ती संलिप्तता को देखते हुए किशोरों की उम्र को 18 वर्ष से 16 वर्ष करने का प्रस्ताव है, जिसके बारे में बिल संसद में लंबित है।
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