पढ़िए कितना घातक हो सकता है गलत तरीके से पानी पीना

राजीव भाई। पानी सदैव धीरे-धीरे पीना चाहिये अर्थात घूँट-घूँट कर पीना चाहिये, यदि हम धीरे-धीरे पानी पीते हैं तो उसका एक लाभ यह है कि हमारे हर घूँट में मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जायेगी और पेट में बनने वाले अम्ल को शान्त करेगी क्योंकि हमारी लार क्षारीय होती है और बहुत मूल्यवान होती है। 

हमारे पित्त को संतुलित करने में इस क्षारीय लार का बहुत योगदान होता है। जब हम भोजन चबाते हैं तो वह लार में ही लुगदी बनकर आहार नली द्वारा अमाशय में जाता है और अमाशय में जाकर वह पित्त के साथ मिलकर पाचन क्रिया को पूरा करता है। इसलिये मुँह की लार अधिक से अधिक पेट में जाये इसके लिये पानी घूँट-घूँट पीना चाहिये और बैठकर पीना चाहिए।

कभी भी खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए (घुटनों के दर्द से बचने के लिए)
कभी भी बाहर से आने पर जब शरीर गर्म हो या श्वाँस  तेज चल रही हो तब थोड़ा रुककर, शरीर का ताप सामान्य होने पर ही पानी पीना चाहिए। भोजन करने से डेढ़ घंटा पहले पानी अवश्य पियें इससे भोजन के समय प्यास नहीं लगेगी।
पानी

प्रातः काल उठते ही सर्वप्रथम बिना मुँह धोए, बिना ब्रश किये कम से कम एक गिलास पानी अवश्य पियें क्योंकि रात भर में हमारे मुँह में Lysozyme नामक जीवाणुनाशक तैयार होता है जो पानी के साथ पेट मे जाकर पाचन संस्थान को रोगमुक्त करता है।

सुबह उठकर मुँह की लार आँखों में भी लगार्इ जा सकती है चूंकि यह काफी क्षारीय होती है इसलिए आँखों की ज्योति और काले सर्किल के लिए काफी लाभकारी होती है। दिन भर में कम से कम 4 लीटर पानी अवश्य पियें, किडनी में स्टोन ना बने इसके लिये यह अति आवश्यक है कि अधिक मात्रा में पानी पियें और अधिक बार मूत्र त्याग करें।

पानी कितना पियें ?
आयुर्वेद के अनुसार सूत्र - शरीर के भार के 10 वें भाग से 2 को घटाने पर प्राप्त मात्रा जितना पानी पियें । 

उदाहरण: अगर भार 60 किलो है तो उसका 10 वां भाग 6 होगा और उसमें से 2 घटाने पर प्राप्त मात्रा 4 लीटर होगी ।

लाभ - कब्ज, अपच आदि रोगों में रामबाण पद्धति है मोटापा कम करने में भी सहायता होगी, जिनको पित्त अधिक बनता है उनको भी लाभ होगा।
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