राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत चीन के इस संकट से अछूता नहीं है, जैसा कि कुछ नीति-निर्माता कह रहे हैं । तथ्य यह है कि वैश्विक जीडीपी में चीन अकेला ३५ प्रतिशत अर्थात सबसे ज्यादा करता है। यदि इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था आगे आने वाले महीनों में आंशिक तौर पर भी संकट में फंसती है तो चीन की विकास दर पांच फीसदी के करीब रहने के लिए बाध्य होगी।
अभी चीन सात फीसदी जीडीपी दर का दावा कर रहा है, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि यह छह फीसदी के करीब है और आने वाले वर्षों में पांच फीसदी तक जा सकती है।२००८ के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को ६०० अरब डॉलर का प्रोत्साहन दिया था। उस प्रोत्साहन पैकेज के बूते ही चीन का सकल घरेलू उत्पाद २००९ के ५० खरब डॉलर से दोगुना होकर अब सौ खरब डॉलर हो चुका है। पर चीन अब पिछली मंदी की तरह प्रोत्साहन पैकेज का बोझ नहीं झेल सकता। इसलिए वहां आंशिक आर्थिक सुस्ती अपरिहार्य है।
इसका असर अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ेगा। अब तक न तो हमारे प्रधानमंत्री और न ही वित्त मंत्री ने इस संकट के बारे में कुछ कहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से पर, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है, तब तक नकारात्मक असर पड़ेगा, जब तक कि चीन की अधिक्षमता का स्वयं हल नहीं निकलता। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों से उम्मीद है, जो चीन और उसके फलस्वरूप एशियाई आर्थिक सुस्ती से प्रभावित नहीं हो सकते हैं।
भारत सरकार ने सड़क, रेलवे और अन्य परिवहन ढांचों में अपनी गतिविधि बढ़ाई है ताकि एशिया में चीन प्रेरित मंदी के नकारात्मक प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सके, अन्यथा भारत आठ फीसदी की दर से विकास नहीं कर सकता, जब ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्था या तो मंदी में हैं या गंभीर आर्थिक सुस्ती से जूझ रही हैं। चीन के घटनाक्रम के मद्देनजर भारत को एक स्पष्ट रणनीति बनाने की जरूरत है, जो अब तक नहीं हुआ है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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