चम्बल के बीहड़ों में भी लड़ी गई थी जंग-ए-आजादी

ग्वालियर। दहशत का दूसरा नाम चंबल के बीहड़ और इसके डाकुओं को कौन नहीं जानता, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इन डाकुओं ने जंग-ए-आजादी भी लड़ी है। प्रख्यात क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल यदि चंबल का चेहरा बने तो डाकू लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी को माथे का तिलक कहा जाना चाहिए।

यह कम लोगों को ही पता है कि बिस्मिल और उनके सहयोगी गेंदालाल दीक्षित की प्रेरणा से चंबल के डकैत अंग्रेजों के बागी बन कर स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सेदार बन गए। इतना ही नहीं चंबल के बागी लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी के गिरोह ने आजादी के लिए अंग्रेज फौज पर सीधा हमला कर दिया था।

अंग्रेजों के इतिहास में यह संघर्ष ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ के नाम से दर्ज है। डाकुओं के इस गिरोह का नेतृत्व खुद गेंदालालजी ने किया था। उन्होंने ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद के साथ मिलकर ‘मातृदेवी’ नामक संगठन बनाया और युवकों को हथियार चलाना सिखाने लगे। धीरे धीरे गिरोह और बढ़ा होता चला गया। 

उस दिन 80 डाकुओं का दल अंग्रेजी खजाने को लूटने के लिए निकला। दुर्भाग्य से इस दल में अंग्रेजों एक मुखबिर भी था। उसने अंग्रेजों को इनके जंगल में ठहरने की जानकारी पहले ही दे रखी थी। अतः 500 पुलिस वालों ने उस क्षेत्र को घेर रखा था। इसके बावजूद अंग्रेजी सेना में हिम्मत नहीं थी कि वो चंबल के डाकुओं का सीधा मुकाबला करें, इसलिए उन्होंने मुखबिर को जहरीली पूड़ियां बनाकर दे दीं। 

मुखबिर की लाई पूड़ियां खाते ही डाकू बेहोश होने लगे। मौका पाकर वह गद्दार भागने लगा। यह देखकर ब्रह्मचारी जी ने उस पर गोली चला दी। अंग्रेजों को लगा कि डाकुओं ने उन पर हमला कर दिया है अत: अंग्रेजी फौज भी सीधे मैदान में आ गई। डाकुओं के कई साथी बेहोश हो चुके थे, फिर भी डकैतों ने अंग्रेजी फौज पर हमला बोल दिया। करीब 500 फौजियों से घिरे 50 डाकुओं ने अंतिम सांस तक गोलियां बरसाईं। अंग्रेजों के कई सैनिक मारे गए, लेकिन धीरे धीरे गोलियां खत्म होतीं गईं और डाकुओं का यह गिरोह अंग्रेजी गोलियों का शिकार हो गया। ब्रह्मचारीजी के साथ करीब 35 डाकू शहीद हो गए, जो बेहोश हो गए थे, उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। 
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