स्कूलों में कक्षा 2 तक बस्ते के बोझ से मुक्ति

भोपाल। कक्षा दो तक के बच्चों को बस्ते के बोझ से छुटकारा मिल सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए नय नियमों के तहत भविष्य में कक्षा दो तक बच्चों की कापी-किताबें स्कूलों को ही संभालनी होंगी। बच्चों को भारी बैग लेकर स्कूल जाने या घर लाने की जरूरत नहीं होगी। भारी बैग के कारण बच्चों की पीठ टेड़ी होने के प्रमाण हैं। केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) की बैठक में बस्ते के बोझ कम करने के लिए नए नियमों को मंजूरी मिलने की संभावना है।

बच्चों पर बस्ते के बोझ को लेकर कई दशकों से चिंता जाहिर की जाती रहीं हैं। 1977 में पहली बार एनसीईआरटीई द्वारा गठित ईश्वरभाई पटेल समिति ने बस्ते का बोझ कम करने का सुझाव दिया था। तब से कई समितियां बनी सुझाए आए और कुछ लागू भी हुए लेकिन जमीनी स्तर पर बस्ते का बोझ कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ता रहा। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की पहल पर इस बार बस्ते के बोझ को कम करने के लिए ठोस पहल हो रही है। इसके तहत कक्षा दूसरी तक बस्ता ले जाने का प्रावधान ही खत्म हो जाएगा और ऊपरी कक्षाओं में बस्ता हल्का होगा।

स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने नई गाइडलाइन में पांच प्रावधान किए हैं। एक दो साल तक के बच्चों का बैग स्कूल में ही रहेगा। दूसरा, ऊपरी कक्षाओं के बच्चों के लिए स्कूल के पुस्तकालय में सिलेबस की किताबें बच्चों के लिए उपलब्ध कराई जाए। तीसरे, टाइमटेबल इस प्रकार से बनाया जाए कि जिसमें सभी किताबें एवं कापियां रोजाना लाने की जरूरत नहीं पड़े तथा खेल तथा सह शैक्षणिक गतिविधियों के पीरिएड रोज रखे जाएं। चौथा, अभिभावक बैग खरीदते समय ध्यान रखें कि वह हल्का हो। पांचवां, ऊपरी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं में संदर्भ पुस्तकों के स्कूल ले जाने पर रोक लगे।

  • क्यों होता है बस्ते का बोझ
  •  स्कूलों खासकर निजी स्कूलों में शुरुआती कक्षाओं से ही ज्यादा किताबें लगाई जाती हैं। साथ ही संदर्भ किताबों का भी प्रचलन बढ़ा है।
  •  टाइमटेबल सही नहीं होता। सह शैक्षणिक गतिविधियां खेल आदि रोज नहीं होती बल्कि हफ्ते में एक-दो दिन ही रखी जाती हैं।
  •  टाइमटेबल का क्रियान्वयन नहीं होता है।


38 साल से हो रही हैं सिफारिशें
1977 में ईश्वरभाई पटेल समिति ने पहली बार बस्ते का बोझ कम करने के लिए रिपोर्ट दी थी। 1984 में फिर दूसरी कमेटी बनी। 1990 में शिक्षा नीति समीक्षा समिति ने बस्ते का बोझ कम करने की बात कही। 1993 में यशपाल समिति ने भी बस्ते का बोझ कम करने के उपाय बताए। 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम परिचर्या में बस्ते के बोझ घटाने पर जोर दिया गया। शिक्षा का अधिकार कानून 2009 भी बच्चों पर बोझ कम करने की बात कहता है। 2012 में दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष पेश एक रिपोर्ट में माना गया कि भारी स्कूल बैग के कारण छोटे बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। तब भी एक गाइडलाइन जारी की गई लेकिन अमल नहीं। 2008 में सीबीएसई ने गाइडलाइन जारी की।

वजन तय हुए लेकिन तराजू कहां से आए
2009 में केवीएस की गाइडलाइन के अनुसार पहली एवं दूसरी कक्षाओं के बच्चों के बैग दो किग्रा से ज्यादा भारी नहीं होनी चाहिए जिसमें बैग का वजन भी शामिल है। इसके बाद तीसरी-चौथी के लिए तीन किग्रा, पांचवीं-सातवीं के लिए चार किग्रा तथा आठवीं से 12वीं तक के लिए छह किग्रा वजन रखा गया। लेकिन विद्यालयों में तराजू कौन लगाता। यह गाइडलाइन भी कागजों में दबी रही।

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