भोपाल। मप्र से हर रोज 26 बच्चे किडनेप हो जाते हैं। ये अलग अलग शहरों से होते हैं अत: आंकड़े आसानी से छिपा लिए जाते हैं लेकिन नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने असलियत उजागर कर डाली।
इसके मुताबिक इंदौर से पिछले सात सालों में 5669 बच्चे गायब हो चुके हैं यानी हर दिन पांच बच्चे। प्रदेश के लिहाज से यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है। जबलपुर से 3, भोपाल से 2 और ग्वालियर से एक बच्चा रोजाना गुम हो जाता है। जो बच्चे वापस नहीं आते, सात साल बाद पुलिस भी इन केस का खात्मा लगा देती है।
बाजार में नीलाम करने होती है किडनेपिंग
बच्चों की गुमशुदगी और ट्रेफिकिंग पर दो साल पहले एक अध्ययन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत दुबे कहते हैं कि मध्यप्रदेश इस तरह के अपराध में जुटे संगठित गिरोहों का सुरक्षित गढ़ बन गया है। वे हर जगह सक्रिय हैं, जो बच्चों को दिल्ली या गोवा तक ले जाते हैं। पुलिस विभाग का अनुभव है कि गुम होने वाले बच्चों में से 15 फीसदी नाराज होकर घर से जाते हैं। वे दो- तीन दिन में लौट आते हैं। किशोर अवस्था में जो लड़कियां गायब होती हैं, उनके लौटने की संभावना बहुत कम होती है। यह लड़कियां महानगरों में देह व्यापार के जाल में फंस जाती हैं। 5 से 10 वर्ष की आयु के बच्चे ट्रेफिकिंग का शिकार हो जाते हैं। इन्हें छुड़ाना मुश्किल होता है। वे खुद भी अपनी कहानी नहीं बताते।
सरकार के पास कोई ठोस प्लान नहीं
ऑपरेशन स्माइल के एआईजी रहे अरविंद दुबे बताते हैं कि जो बच्चे वापस आते हैं या मिल जाते हैं, वही हमारी सूचना का सबसे बेहतर जरिया होते हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में पुख्ता सूचनाएं नहीं मिल पातीं। सरकार के पास सिवाए मामले की गंभीरता को स्वीकार करने के और कोई ठोस प्लान नहीं है।
पुलिस नहीं, परिजन ही खोज पाते हैं
आधुनिक संचार तकनीक के बावजूद पुलिस गायब बच्चों को ढूंढने में नाकाम है। जो बच्चे वापस भी आते हैं, उनमें से ज्यादातर को परिजन ही तलाशते हैं।
जस्टिस शीला खन्ना, पूर्व अध्यक्ष, मप्र बाल आयोग
