भोपाल। खुद को लोकप्रिय बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोषणाएं तो कर देते हैं परंतु उसका क्या असर पड़ता है यह पता लगाने वाला कोई विभाग मप्र में नहीं है। हालात यह बने कि शिवराज सिंह की एक घोषणा के कारण 2.5 लाख क्विंटल गेहूं का गोलमाल हो गया।
पिछले साल अतिवर्षा की वजह से गेहूं के दाने छोटे-पतले रह गए थे और चमक भी चली गई थी। इसी दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि जिन दानों में चमक चली गई है उसे भी खरीद लिया जाए। समितियों ने शिवराज सिंह की इस घोषणा को पहले फुलप्रूफ कराया। किसानों का गेहूं खरीदने से इंकार कर दिया। गुस्साए शिवराज सिंह ने केंद्र से अनुमति लेकर विभागीय स्तर पर आदेश जारी करा दिए।
बस फिर क्या था। मप्र सहित उप्र और राजस्थान का रिजेक्टेड गेहूं भी खरीद लिया गया। देखते ही देखते 2.5 लाख क्विंटल का भंडार जमा हो गया। समितियों ने फटाफट भुगतान भी कर दिया। मुख्यमंत्री की इज्जत का सवाल जो था। अब इस घटिया गेहूं को बढ़िया मानकर गोदामों में जमा करा दिया गया है।
क्या होना चाहिए था
बिना चमक वाले गेहूं और घटिया गेहूं में अंतर होता है। घोषणा बिना चमक वाले गेहूं की हुई थी, खरीददारी घटिया गेहूं की कर ली गई। होना यह चाहिए था कि खरीददारी के बाद जांच की जाती और बढ़िया व घटिया गेहूं को अलग अलग कर दिया जाता। बढ़िया गेहूं को गोदामों में पहुंचाया जाता और घटिया गेहूं को उपयोग अनुसार नीलाम कर दिया जाता। घाटे की रकम की भरपाई सरकार करती।
हुआ क्या
हो यह गया कि गेहूं गोदामों में चला गया। यहां से लोगों के घरों में पहुंच जाएगा। वो बढ़िया गेहूं का भुगतान कर घटिया गेहूं खरीदेंगे। कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय घोषणा की कीमत चुकाएंगे और बीमार भी होते रहेंगे।