कहीं व्यापमं की मौतों के पीछे पोलोनियम तो नहीं

भोपाल। व्यापमं के दौरान हुईं ज्यादातर मौतें असामान्य हैं। मरने वालों की उम्र नहीं हुई थी और ना ही वो ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित थे जिसके चलते मौत हो जाती। मरने वालों में ज्यादातर अचानक बीमार हुए और मर गए। दिल्ली के पत्रकार अक्षय सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ। अचानक झाग निकला और मौत हो गई। संदेह है कि कहीं इन मौतों के पीछे साइनाइड से भी तेज जहर 'पोलोनियम' या इसी तरह का कोई दूसरा जहर तो नहीं।

पहले हालात पर गौर कीजिए
ज्यादातर मौतें व्यक्ति के अचानक बीमार हो जाने के कारण हुईं हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मौत का कोई ठोस कारण सामने नहीं आ पा रहा है। मप्र में पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों की जानकारी वैसे भी तीखे और तेज जहरों के मामले में कम ही है। इतिहास गवाह है, यहां डॉक्टरों ने कभी किसी ऐसे जहर को नहीं पकड़ा, जो मेडिकल साइंस के लिए चुनौती हो।

व्यापमं के आरोपियों में ज्यादातर करोड़पति हैं। ऐसे करोड़पति जो पिछले 10 सालों में अकूत संपत्तियों के मालिक हुए। वो खुद को बचाने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं।

व्यापमं के ज्यादातर आरोपियों के तार मेडिकल से जुड़े हुए हैं, इसलिए उनके पास इस तरह के जहर की जानकारी आसानी से हो सकती है जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पकड़ा ना जाए और मौत बीमारी के कारण हुई प्रतीत हो।

अब पढ़िए पोलोनियम-210 के बारे में
पोलोनियम-210 कहलाने वाले इस ज़हर की जांच भारत में मुमकिन ही नहीं है। मृत शरीर में इसकी मौजूदगी का पता लगाना भी आसान नहीं होता। दरअसल ये एक रेडियोएक्टिव तत्व है। जिससे निकलने वाला रेडिएशन इन्सानी शरीर के अंदरूनी अंगों के साथ-साथ डीएनए और इम्यून सिस्टम को भी तेजी से तबाह कर सकती है। अगर इसे दुनिया का सबसे ख़तरनाक ज़हर कहा जाए, तो ग़लत नही होगा।

जानकारों के मुताबिक पोलोनियम 210 का इस्तेमाल इंडस्ट्रियल क्षेत्र में होता है। खासतौर पर मशीनों में इलेक्ट्रिसिटी स्टैटिक हटाने के लिए। कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि पोलोनियम-210 अगर नमक के छोटे कण जितना भी इंसान के शरीर में चला जाए तो यह कुछ ही पल में उसे मौत की नींद सुला सकता है। यदि ये खाने के साथ मिलकर इंसानी शरीर में जाए तो इसका स्वाद तक पता नहीं लगाया जा सकता। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम में पोलोनियम 210 का इस्तेमाल ट्रिगर के तौर भी किया गया था।

कैसे किया होगा हमला
शिकार के शरीर में जहर का एक छोटा सा कण पहुंचा देना काफी आसान काम हो सकता है। जहां तक पत्रकार अक्षय सिंह की बात है तो काफी संभावनाएं हैं कि इसके लिए किसी ऐसी गन का इस्तेमाल किया गया हो जो सुई जैसे बारीक कारतूस को फायर करती है। इस कारतूस में जहर लगा हो जो अक्षय के शरीर में प्रवेश करा दिया गया। अक्षय को सहज ही लगा हो कि एक मच्छर ने काटा है, साथ खड़े लोगों को पता भी ना चला हो। इसीलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका। अक्षय सिंह के साथियों को बेहतर पता होगा कि अक्षय की तबीयत खराब होने से 10 मिनट पूर्व की अवधि में क्या कोई अंजान व्यक्ति अक्षय के आसपास से गुजरा था ? मामला हाईप्रोफाइल है। मेडिकल से जुड़ा हुआ है। रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

क्या ऐसी गन होतीं हैं
जी हां, ऐसे हमलों के लिए कई प्रकार की गन इस्तेमाल की जातीं हैं। ये आकार में बहुत छोटी होतीं हैं। इतनी छोटी की आपकी हथेली में छिप जाएं। ये आपकी चाबी के छल्ले की शक्ल में भी हो सकतीं हैं या फिर स्मार्टफोन की शक्ल में भी। इनकी मारक क्षमता अधिकतम 6 फिट तक होती है। अच्छा तीरंदाज इन्हे 12 फिट की दूरी से भी इस्तेमाल कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति इस तरह के हथियार लेकर सरेआम घूमता भी है तो किसी को पता ही नहीं चलता। 

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