रायसेन। इन दिनों यहां रोज तोप चलाई जाती है लेकिन यह तोप किसी को मारने के लिए नहीं बल्कि रमजान के महीने में रोजा रखने वालों को इफ्तारी की सूचना देने के लिए चलाई जाती है। 200 साल पुरानी परंपरा आज भी जिंदा है और बदस्तूर निभाई जा रही है। इस तोप को सालों से एक ही परिवार चलाता आ रहा है।
जिला मुख्यालय पर रमजान के दौरान सेहरी व अफ्तारी की समय की सूचना देने के लिए तोप चलाए जाने की परंपरा है। किले की पहाड़ी पर पप्पू भाई और सईद खां तोप चलाकर रोजाना रोजे खोलने की सूचना देते हैं। सेहरी के लिए सुबह और शाम को अफ्तारी के लिए तोप चलाई जा रही है।
इस तोप को चलाने के लिए बाकायदा जिला प्रशासन द्वारा एक माह का लाइसेंस भी जारी किया जाता है। रमजान की समाप्ति पर ईद के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है। तोप चलाने वाले पप्पू खां का कहना है कि उनका परिवार ही सालों से तोप चलाता आ रहा है। वह स्वयं 15 साल से तोप चला रहा है। तोप चलाने के लिए आधे घंटे पहले तैयारी करना पड़ती है, तब कहीं जाकर समय पर तोप चल पाती है। रजमान में समय का बड़ा महत्व होता है, इसलिए उसका पूरा ख्याल रखा जाता है।
सेहरी के लिए हिन्दी बजाता है नगाड़े
समय की सूचना देने के लिए सेहरी से 2 घंटा पहले रोजदारों को जगाने के लिए नगाड़े बजाए जाते हैं। जिससे लोग समय से पहले तैयारी कर सकें। नगाड़े बजाने की परंपरा भी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। शहर का वंशकार परिवार इस काम को संभाले हुए है। नगाड़े किले की प्राचीर से बजाए जाते हैं। इससे इनकी आवाज मीलों दूर तक सुनाई देती है।