राकेश दुबे@प्रतिदिन। महीनों बाद रूस के उफा में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच बातचीत हुई है। इस बातचीत की एक अहम उपलब्धि आपसी रिश्तों में थोड़ी तल्खी कम होना है। संयुक्त बयान में प्रमुखता से कश्मीर का जिक्र ना कराने में भारत कामयाब रहा। ओर नरेंद्र मोदी अगले साल सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने पाकिस्तान जाएंगे। लेकिन सवाल ये है कि जो उपब्धियां बताई जा रही हैं, वो कितनी ठोस हैं। क्योंकि मोदी सरकार की पाकिस्तान डिप्लोमैसी अभी तक कंफ्यूजन भरी रही है। पिछले साल नवंबर में सचिव स्तर की बातचीत रद्द होने के बाद से आखिर हालात में ऐसे क्या बदलाव आए जिससे दोनों देशों के बीच फिर से बातचीत शुरू हुई।
मोदी-शरीफ की इस मुलाकात में दोनों देशों के आपसी सुधारने पर जोर दिया गया। मोदी के 2016 में पाकिस्तान जाने की भी घोषणा की गई। दोनों नेताओं के संयुक्त बयान में कश्मीर का खास जिक्र नहीं किया गया। नवाज शरीफ ने आतंकवाद के खात्मे पर सहमति जताई और मुंबई पर आतंकी हमले की सुनवाई तेज करने की बात कही। दोनों देश आरोपियों के वॉयस सैंपल देने पर भी राजी हुए हैं। आतंक और सुरक्षा पर सुरक्षा सलाहकारों की जल्द बैठक की बात कही गई है। जिसके तहत बीएसएफ के डीजी और पाक रेंजर्स की जल्द मुलाकात की घोषणा की गई है। सीमा पर गोलीबारी पर भी भारत ने चिंता जताई है। दोनों देश मछुआरों को १५ दिन में रिहा करने पर सहमत हुए हैं।
अगर पाकिस्तान के साथ मोदी डिप्लोमैसी की बात करें तो पाकिस्तान के साथ कभी नरम, कभी गरम नीति अपनाई जाती रही है। पीएम मोदी के शपथ समारोह में नवाज शरीफ को बुलाया गया था। लेकिन अलगाववादियों से बातचीत के मुद्दे पर पाकिस्तान से सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी गई थी। क्रिकेट डिप्लोमैसी के जरिये फिर नजदीकियों की कोशिश की जा रही है। म्यामांर में फौजी कार्रवाई के दौरान नेताओं के भड़काऊ बयान ने दोनों देशों के बीच काफी कड़वाहट भर दी थी। अब देखना ये है कि पाकिस्तान के साथ कभी गरम, कभी नरम की इस डिप्लोमैसी से कितनी बनेगी बात!
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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