मप्र में कई 'विवेक श्रौत्रिय' शासन से पीड़ित और परेशान

इंदौर। ग्वालियर में बतौर संयुक्त कलेक्टर विवेक श्रौत्रिय के इस्तीफे ने प्रशासनिक हलकों में खलबली मचा दी है। इंदौर से लेकर भोपाल तक उनके इस्तीफे की चर्चा रही। वे इंदौर में भी लंबे समय तक पदस्थ रहे हैं। विवेक जैसे कई अफसर हैं, जो समय पर पदोन्न्ति नहीं मिलने से निराश हैं। न तो समय पर वेतनमान बढ़ता है, न ही सीनियरिटी के हिसाब से पोस्ट मिलती है।

राज्य प्रशासनिक सेवा के कई अफसर ऐसे हैं जो अब भी संयुक्त कलेक्टर के रूप में ही नौकरी कर रहे हैं, जबकि उनसे जूनियर बैच के राज्य पुलिस सेवा के अफसर जिलों में एसपी बनकर बैठे हैं।

नियमानुसार डिपार्टमेंट प्रमोशन कमेटी (डीपीसी) की बैठक साल में दो बार होना चाहिए, लेकिन बैठक में ही दो-तीन साल लग जाते हैं। कई बार राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर भी सीनियरिटी-जूनियरिटी के झगड़े कोर्ट तक ले जाते हैं और कमेटी को बैठक नहीं करने का बहाना मिल जाता है। वर्तमान में भी शहर में कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें समयमान वेतनमान नहीं मिल पाया है।

आलोक सिंह : राज्य प्रशासनिक सेवा से चयनित हैं। उज्जैन, इंदौर जिले के एडीएम रह चुके हैं। वर्तमान में जिला नागरिक आपूर्ति विभाग के रीजनल मैनेजर हैं। उन्हें नियमानुसार चौथा वेतनमान नहीं मिल पाया।

दिलीप कुमार : अपर कलेक्टर कुमार को भी अब तक चौथा वेतनमान मिल जाना था, लेकिन वे भी इससे वंचित हैं।

दीपक सिंह : राज्य प्रशासनिक सेवा से चयनित सिंह आईडीए सीईओ रह चुके हैं और वर्तमान में एडीएम हैं। उन्हें भी अब तक चौथा वेतनमान नहीं मिल पाया।

वरदमूर्ति मिश्रा : संयुक्त कलेक्टर मिश्रा को अब तक अपर कलेक्टर पद पर पदोन्न्त हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जबकि उनसे जूनियर अफसर पदोन्न्ति पाकर अपर कलेक्टर बन गए।

यह है नियम
राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों का मूल विभाग सामान्य प्रशासन विभाग है। यह विभाग सभी दूसरे विभागों को समयमान वेतनमान दिलाने के लिए उत्तरदायी है, लेकिन अपने ही विभाग के अफसरों के लिए समय पर बैठक नहीं कर पाता। नियमानुसार नियुक्ति के बाद छह साल तक संयुक्त कलेक्टर, दस वर्ष बाद एडिशनल कलेक्टर और 14 वर्ष बाद चौथा वेतनमान मिलना चाहिए, लेकिन कई अफसरों की तनख्वाह समय पर डीपीसी की बैठक नहीं होने के कारण कम है।

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