दमोह। जिले के शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल बिजोरा खमरिया में पदस्थ अंशकालीन लिपिक शीतल कुमार सोनकर और इसके जैसे तमाम कर्मचारी बंधुआ से भी बदतर हालात में काम कर रहे हैं। इनका पदनाम तो पार्टटाइम है परंतु नौकरी फुलटाइम करनी पड़ती है। पगार मिलती है मात्र 2000 रुपए महीने, वो भी 4 महीने से नहीं मिली।
शीतल कुमार सोनकर ने बताया कि 4 माह से वेतन न मिलने से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई है कि न तो वह बच्चों की फीस भर पा रहा है और न ही परिवार का भरण-पोषण हो रहा है। पूर्व में मामले की शिकायत डीईओ से की गई थी, इसके बावजूद भी अभी तक उसे वेतन नहीं मिला रहा है।
उन्होंने बताया कि मप्र शासन द्वारा सन 1998 में उसकी नियुक्ति शासकीय हाईस्कूल बिजौरा खमरिया में अंशकालीन लिपिक के पद पर की गई थी। शुरूआत में उसे 400 रुपए प्रतिमाह मिलते थे। नौकरी के 16 साल बीतने के बाद वर्तमान में मात्र 2 हजार रुपए प्रतिमाह मिल रहे हैं। यह वेतन भी उसे 4 माह से नहीं मिला है। इस तरह वह पिछले 6 माह से डीईओ कार्यालय के चक्कर लगा रहा है, लेकिन उसका वेतन नहीं मिल रहा है। वेतन न मिलने से वह अपनी दो बेटियों एवं एक बेटे की स्कूल की फीस नहीं पाया है जिससे उनका एडमिशन भी नहीं हो पा रहा है। शीतल ने बताया कि यदि उसे एक सप्ताह के अंदर वेतन नहीं दिया गया तो उसे अपने परिवार व बच्चों सहित डीईओ कार्यालय व कलेक्टोरेट कार्यालय के बाहर धरने पर बैठने मजबूर होना पड़ेगा।
क्या है मामला
मप्र शासन द्वारा वर्ष 1998 में शिक्षाकर्मियों के साथ अंशकालीन लिपिकों की भर्ती की थी। उस समय दमोह जिले से दो अंशकालीन लिपिक एवं चार भृत्य की भर्ती हुई थी। जिसमें शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल बिजौरा खमरिया में शीतल कुमार सोनकर व भृत्य परमानंद रैकवार की भर्ती हुई थी। वहीं बिलानी हाईस्कूल में अंशकालीन लिपिक दिनेश तिवारी की भर्ती हुई थी।
नियुक्ति के कुछ साल बाद शिक्षाकर्मियों को तो शासन ने अध्यापक का दर्जा देते हुए उन्हें पर्याप्त सुविधाएं व उचित वेतन देना शुरू कर दिया लेकिन अंशकालीन लिपिक की स्थिति जस की तस है।
