भोपाल। व्यापमं घोटाले के छिपे हुए राज और मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी साधना सिंह के एसएमएस रिकार्ड उजागर करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ शिवराज सरकार ने मप्र विधानसभा भर्ती घोटाले का बम फोड़ा तो जोर से था लेकिन कोर्ट में सरकार कमजोर साबित हुई और इस घोटाले से जुड़े सभी आरोपियों को जमानत मिल गई। सरकार कोई दमदार दलील या सबूत पेश नहीं कर पाई।
शिवराज सरकार पर अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि उसने दिग्विजय सिंह शासनकाल की उचित समय पर जांच नहीं कराई और जो मामले स्पष्ट रूप से दिग्विजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई के ठोस आधार उपलब्ध कराते थे, उनकी फाइलें भी दबाकर रखीं गईं। केवल इसलिए ताकि विरोध में उठने वाली दिग्विजय सिंह की आवाज को दबाया जा सके।
मप्र का विधानसभा भर्ती घोटाला भी इसी लिस्ट का एक मामला है। सरकार ने उचित समय पर कार्रवाई नहीं की। फाइल को दबाए रखा गया और जब दिग्विजय सिंह ने व्यापमं मामले में शिवराज के परिवार पर हमले शुरू किए तो इसी धूल चढ़ी फाइल को निकालकर एफआईआर करवा दी गई, परंतु पुराना बम तेज धमाका नहीं कर पाया। भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि अब तो दिग्विजय सिंह को जेल जाना पड़ेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। न्यायालय में सरकार का पक्ष कमजोर साबित हुआ और सभी आरोपियों को जमानत मिल गई।
याद दिला दें कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था, परंतु बाद में सबकुछ शांत हो गया। सरला मिश्रा हत्याकांड की गायब हो गई फाइल, भर्ती घोटाले में सरकार का लचर पक्ष कहीं यह इशारा तो नहीं कर रहा कि दोनों पक्षों के बीच कोई गुप्त समझौता हो गया है।