व्यापमं: यह तो होना ही था

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जनभावनाओं के सम्मान की चिंता में रात भर न सोने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सीबीआई जांच के लिए दिया गया आवेदन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया गया। आवेदन की प्रेरणा उन्हें तब आई जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस घोटाले से जुड़ी याचिकाओं को 9 जुलाई को सुनवाई के लिए तय कर दिया गया। न्याय के मान्य सिद्धांत के अनुरूप किसी भी हाईकोर्ट को यही करना भी था, मध्यप्रदेश की हाईकोर्ट ने भी वही किया। चिन्तन के क्षणों में शायद मुख्यमंत्री को यह अहसास होने लगा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश सुना दिया तो इस्तीफे का दबाव संभालना मुश्किल हो जाएगा। उनके मास्टर स्ट्रोक ने अपना काम नहीं किया। 

यह ऐसा घोटाला है जिसमें प्रदेश सरकार से जुड़े तमाम शक्ति केंद्र संदेह के घेरे में हैं। शिवराज सिंह के मंत्रिमंडलीय सहयोगियों पर ही नहीं, मुख्यमंत्री के पीए तक पर गंभीर आरोप हैं। राज्यपाल जैसा संवैधानिक पद भी इन विवादों से अछूता नहीं रहा। यहां तक कि बीजेपी सरकार के कर्ता-धर्ता जिस आरएसएस को अपनी प्रेरणा का मुख्य स्रोत बताते नहीं थकते, उसका सर्वोच्च नेतृत्व भी इन छींटों से नहीं बच सका है। ऐसे में सबसे बड़ी जरूरत इस मामले की ऐसी जांच शुरू करवाने की थी जो इन सबकी पहुंच से ऊपर दिखती। इसका एक आसान तरीका यह हो सकता था कि जब घोटाला या उसकी व्यापकता सामने आई, तभी जांच सीबीआई के सुपुर्द कर दी जाती।

यह सही है कि उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और सीबीआई जांच शिवराज सरकार के लिए खतरनाक साबित हो सकती थी। लेकिन तब बीजेपी के लिए राजनीति करने का पूरा मौका होता और उसकी सरकार पर जांच को दबाने या भटकाने के आरोप नहीं लगते। बहरहाल, हुआ इसका ठीक उल्टा।एक तरफ तो मुख्यमंत्री खुद घोटाले का भंडाफोड़ करने जैसे खोखले दावे करते रहे, दूसरी तरफ उनकी अगुवाई वाला प्रशासनिक तंत्र जांच के नाम पर लीपापोती में जुटा रहा। चाहे ढाई हजार से ज्यादा छात्रों को आरोपी बनाने की बात हो या मुख्यमंत्री के करीबी और ताकतवर लोगों को खुला छोड़े रखने की- ऐसे दर्जनों बिंदु हैं जो जांच प्रक्रिया को संदिग्ध बनाते हैं। सरकार ने ऐसे किसी भी बिंदु पर संदेह दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया।

इस बीच मामले के गवाहों और आरोपियों की रहस्यमय मौतों का सिलसिला भी शुरू हो गया। इन मौतों की जांच करवाने के बजाय शिवराज सरकार के तमाम प्रभावशाली मंत्री बेशर्मी से सरकार के हर कदम को उचित ठहराते रहे। ऐसे में सवाल शिवराज सरकार की साख या उसकी विश्वसनीयता से भाजपा की राजनीतिक जिम्मेदारी का है। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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