मजदूर, बेरोजगार, सरकारी कर्मचारी: सबके नाम से निकल गई स्कॉलरशिप

भोपाल। मप्र में स्कॉलरशिप घोटाले की परतें खुलना शुरू हो गईं हैं। जबलपुर के 22 कॉलेजों के खिलाफ एफआईआर हो गई है लेकिन यह तो छोटी सी शुरूआत है। इस घोटाले का कमाल देखिए। कॉलेज संचालकों ने चायवाला, पुलिसकर्मी, सरकारी कर्मचारी और बेरोजगारों के नाम पर स्कॉलरशिप निकाल ली और उन्हें पता तक नहीं। मप्र के हर शहर में ऐसे हजारों उदाहरण हैं।

पुलिस को भी नहीं बक्शा
2009-10 में निवारण इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल ने डीएमएलटी में जिस छात्र के दस्तावेज लगाकर 18900 स्कॉलरशिप निकाली। वह छात्र उस दौरान पुलिस में नौकरी पर था। एपीएन कॉलेज ने भी इसी बीच इस पुलिस वाले के नाम स्कॉलरशिप ली।

चाय बेचता रहा और स्कॉलरशिप निकल गई
2010-11 में महाकोशल पैरामेडिकल कॉलेज में एक छात्र के नाम पर 18900 रुपए स्कॉलरशिप निकली। जबकि उस छात्र को दाखिले की खबर नहीं। वह शहपुरा बस स्टेंड में चाय का ठेला लगा रहा था। पूछताछ में वह खुद हैरान रह गया कि उसका दाखिला डीएमएलटी में हुआ है।

मंडला में दाखिला जबलपुर से स्कॉलरशिप
एक छात्र का मंडला के इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल में दाखिला हुआ। उसी सत्र 2010-11 में जबलपुर के महाकोशल पैरामेडिकल कॉलेज से उस छात्र के नाम पर 84 हजार स्कॉलरशिप निकाली गई।

अंकसूची गुमी, यहां स्कॉलरशिप निकल गई
2010 में एक छात्र ने लार्डगंज थाने में अंकसूची गुमने की रिपोर्ट दर्ज करवाई। यह युवक पोस्ट ऑफिस में नौकरी करता है। रिपोर्ट लिखने के कुछ दिन बाद इसी अंकसूची पर एपीएन कॉलेज में डीएमएलटी कोर्स में दाखिला दिखाया गया। कॉलेज ने 18900 रुपए की स्कॉलरशिप निकाली।

नौकरी के बहाने लाते दस्तावेज
पैरामेडिकल कोर्स में दाखिला शहर के आसपास के पिछड़े इलाकों से आए बच्चों का ज्यादा हुआ। दलाल गांव में घूमते और लोगों से नौकरी लगवाने के बहाने अंकसूची और जाति प्रमाण ले आते। उनकी फोटोकापी करवाकर कॉलेजों में जमा हो जाती। उसी के आधार पर स्कॉलरशिप जारी हो जाती। कई जगह बच्चों को बताकर दाखिला दिलाया गया। उन्हें अंकसूची देने के लिए 500 से 1 हजार रुपए मिले। वहीं दलाल एक दाखिले के लिए दस्तावेज उपलब्ध करवाने का 4 से 7 हजार रुपए वसूल करता। उसका काम सिर्फ दस्तावेजों की फोटोकापी मुहैया करवाना होता था।

ये तो महज उदाहरण है। सिर्फ नाम और कॉलेज बदल जाएंगे। बाकी स्कॉलरशिप के इस खेल में सबकुछ इसी तरह चल रहा था। दलाल अगर छात्र नहीं मिलते तो मार्कशीट और जाति प्रमाण पत्र लाते और उनका नाम कॉलेजों के रजिस्टर पर चढ़ जाता। जिनके नाम पर कॉलेज छात्रवृत्ति निकालते उन्हें पता ही नहीं होता कि पैरामेडिकल में उनकी पढ़ाई चल रही है। और जो जानते थे उनके हाथ महज 500 रुपए लगते थे। हजारों रुपए कॉलेज और दलाल हजम कर जाते थे। यह खुलासा हुआ है लोकायुक्त जांच में। जांच टीम के सामने छात्रों ने यही हकीकत बयां की है।

एक छात्र की स्कॉलरशिप
एक साल का सर्टीफिकेट कोर्स- 13 हजार
दो साल का डिप्लोमा कोर्स- 18 हजार
3 साल की डिग्री - 28 हजार रूपए प्रति वर्ष

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