कागज रहित बीमा पॉलिसियों के क्षेत्र में बड़ा कदम बढ़ाते हुए देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने अब डिजिटल पॉलिसियां जारी करने का फैसला किया है। पिछले कई सालों से इस दिशा में आगे बढऩे से परहेज करते रहने के बाद एलआईसी ने यह कदम उठाया है। कुछ निजी कंपनियां पहले से ही ऐसे उत्पादों की पेशकश करती रही हैं लेकिन अभी तक इसे लेकर कोई खास आकर्षण नहीं था क्योंकि अभी तक इस मुहिम में एलआईसी शामिल नहीं थी। इंडिया फस्र्ट इंश्योरेंस ने सितंबर, 2013 में पहली डिजिटल पॉलिसी पेश की। भारत में 2 फीसदी से भी कम पॉलिसियां इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में बिकती हैं।
एलआईसी अभी तक इस प्रक्रिया में लगने वाली लागत के कारण इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहा था। इसके अलावा इसकी एक वजह यह थी कि डिजिटल पॉलिसियों के लिए बाहरी तकनीक का प्रयोग किया जाता था। अब एलआईसी के ई-बीमा प्रक्रिया का हिस्सा बन जाने के बाद चीजें बदल सकती हैं जहां बीमा पॉलिसियों को बीमा रिपॉजिटरी के जरिये डिजिटल रूप में परिवर्तित कर दी जाएंगी। एलआईसी के चेयरमैन एस के रॉय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कई बहसों के बाद उन्होंने डिजिटलीकरण के लिए बीमा रिपॉजिटरी के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया है।
एक बीमा रिपॉजिटरी (आईआर) एक बीमाधारक को बीमा पॉलिसियां इलेक्ट्रॉनिक रूप में खरीदने और उसे अपने पास सहेजने में मदद करने की सुविधा है। ये रिपॉजिटरी, शेयर डिपॉजिटरी या म्युचुअल फंड एजेंसी की तरह लोगों को जारी की गई बीमा पॉलिसियों का रिकॉर्ड रखेंगी। इन पॉलिसियों को इलेक्ट्रॉनिक पॉलिसी या ई-पॉलिसी का नाम दिया गया है जिसे एक इलेक्ट्रॉनिक बीमा खाते में रखा जा सकता है। आगे की योजना के मुताबिक अधिक मूल्य वाली पॉलिसियों का डिजिटल रूप में होना आवश्यक कर दिया जाएगा। हालांकि अलग-अलग बीमा कंपनियों की प्रत्येक बीमा रिपॉजिटरी के साथ अलग व्यवहार होगा। औसतन डिजिटलीकरण की लागत प्रति व्यक्ति 75-80 रुपये होगी। इसके अलावा एक सालाना सेवा शुल्क भी वसूला जाएगा।